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मेरी बिखरती कविताएँ facebook page
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दौर था के खौफ से
साथ चल दिया करते!
हवा के रूख में लोग
अब ढलते नहीं हैं!!-
तुम पढते रहना और यूंही,
आगे बढ़ते रहना!
माहौल डर का बना रहे,
है कलम हाथ से छूटा रहे!
अंदर से कमजोर बनाकर,
देश को है चला रहे!
कैद कर दिया हर घर को,
पर जंग नेताओं की जारी,
जां, जूबां और कलम से लिखो,
संघर्षों की है बारी...✒️🖋️✒️-
बस ख्याल ही,
आया था ज़हन में मिरे!
फिर बदलता रहा मैं,
करवटें रात भर!!-
सदमे में है ईक
हवा का झोंका!
जिसने रोशन करते किसी,
दिए को बुझा दिया!!-
ये सर्द रातें,
रह रहकर ठंड से
कंपकंपाती हुई
और ठिठुरती हुई किसी
की जान ले रही है!
और दुसरी तरफ
ईश्क़िए-गुलदान और नौसिखिए
सर्द रातों में
घूमे जा रहे हैं!!-
वो अब सूख चुकी है,
जैसे उसमें जान ही
न हो!
ठंड ने उसे यहाँ तक सिकोड़
दिया है, कि मानो
बड़ी बुरी तरह उसका
गला घोंटा हो!
और अब वो जिंदा है
या मर चुकी है,
लेकिन लोग आकर खुद
में दुबकी हुई को जलाएंगे
और उसको चिल्लाते हुए
देखकर भी दो पल के लिए
शरीर को गर्माहट देंगे!
और बुझते ही चले जाएंगे!
सफर अजनबी होते हुए भी,
अनजान ही रहा!!-
कुछ ने कहा कि दूसरों को,
पढोगे तो खुद को लिख पाओगे!
खुद मैं ना रहा तो मैं,
किसको लिखता!!-