कितना खालीपन है मुझमें जो भरना चाहती हूं वक्त बेवक्त गैरों को अपनाती रहती हूं, मगर हर बार भूल जाती हूं सबके पास उनके अपने हैं वो मैं ही हूं जिसने खुद को खाली कर रखा है
अक्सर वो लोग अपने ही होते हैं जो राहें रोके खड़े रहते हैं चाहते हैं आसमां छू आए हम मगर पंख लगा उड़ने भी नहीं देते हैं ये कैसे अपने हैं जो अपनों का सुकून छीन लेते हैं