कितना खालीपन है मुझमें जो भरना चाहती हूं
वक्त बेवक्त गैरों को अपनाती रहती हूं,
मगर हर बार भूल जाती हूं
सबके पास उनके अपने हैं
वो मैं ही हूं जिसने खुद को खाली कर रखा है-
कितना अच्छा लगता है ना जब कोई नया नाम देता है
मगर तकलीफ़ होती है जब वहीं इंसान साथ नहीं देता-
अक्सर वो लोग अपने ही होते हैं
जो राहें रोके खड़े रहते हैं
चाहते हैं आसमां छू आए हम
मगर पंख लगा उड़ने भी नहीं देते हैं
ये कैसे अपने हैं जो
अपनों का सुकून छीन लेते हैं-
तुम्हें पाने की ख्वाईश ने
मुझे बेहिसाब सब्र से नवाज़ा है...
तभी आज तुमसे मेरी नाराज़गी
बस पांच रोज़ का तमाशा है...-
ये कैसी लड़ाई है हमारी जो
तेरी खातिर अकेले ही लड़े जा रहे हैं हम
तु ही साथ खड़ा नहीं है हमारे और
तेरा ही हाथ थामने को बढ़े जा रहे हैं हम-
बड़ा आसान है दूसरों में खामियां ढूंढना
मुश्किल तो है ख़ुद की गलतियां पहचानना
मगर बेहद मुश्किल है उन गलतियों को सुधारना।-
जो ख़्वाबों में तुमने जगह बना ली है
ख्यालों में कोई और आए कैसे
ए-यार इश्क़ कितना है तुमसे
तुम्हें बताए कैसे-
अनजान शहर, अनजान लोगों को अपना मानना
गलत होता है गैरों में अपनों को तलाशना-
कोई तो हो जो मुझे मां की तरह मोहोब्बत करे
जिसे खोने से जितना मैं घबराऊ,
मुझे खोने से वो भी उतना ही डरे-