Surykant Verma   (-✍️सूर्यकान्त वर्मा)
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Joined 18 June 2019


Joined 18 June 2019
7 JUL 2023 AT 9:13

जीनगी ह फुलवारी बन जय

जीनगी ह सबके फुलवारी बन जय,
रंग-बिरंग फूल कस सबके चेहरा चमकय,
रातरानी, दूधमोंगरा ले फुलवारी (जीनगी) महकय,
दया, मया, सहयोग ले जीनगी हरियावय,
जीनगी ह सबके फुलवारी बन जय,
जीनगी ह सबके फुलवारी बन जय।

बनके मदार मैं काली माई के चरण ल पावंव,
तोर दिये जीनगी दाई तोरे नाम कर जांवव,
कनेर, धतुरा कस अर्पण हावंव मैं ह भोला,
जीनगी ल संवार दे, स्वीकार ले तै ह मोला,
रामायण, भागवत बर फूड़हर रूप सब ल मिल जय,
जीनगी ह सबके फुलवारी बन जय,
जीनगी ह सबके फुलवारी बन जय।

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2 MAR 2023 AT 22:46

चल तू दे प्रमाण
निरंतर कर के विकास
कि चल रही सांस
भर ले मन में आस

दिखा दे मोती निकाल
भले सागर हो विकराल
व्योम में तू उड़ान भर
मुट्ठी में ले तू तारे भर
चल तू दे प्रमाण
निरंतर कर के विकास

साहस दिखा तू दिखा सामर्थ
जाने ना दे तू जीवन व्यर्थ
जग में तू बिखेर आलोक
स्वर्ग बना दे तू ये भूलोक
चल तू दे प्रमाण
निरंतर कर के विकास

है शक्ति अदम्य, साहस अदम्य
बंजर को तू बना दे अरण्य
भर हुंकार अपनी शक्ति को जान
बाली तुल्य तू है बलवान
चल तू दे प्रमाण
निरंतर कर के विकास
कि चल रही सांस

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22 APR 2022 AT 9:03

In forming and playing a part in a new relationship, the person starts giving less importance to the old relationship. If ever there is a slight movement in the life of a character of a new relationship and the old relatives of that movement seem more knowledgeable, then shamelessly, with great ease from the old character, they start collecting information about the new character who has been from the same old character since time immemorial. Doesn't react to the turmoil of the character's life.

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5 APR 2022 AT 21:45

ढूंढते हुए एक दिन जब तुम आओगे,
जैसा छोड़ा था, वैसा ही पाओगे,
ना किया है कोई फेरबदल हमने हममें,
तुम मुझ में आज भी अपनापन ही पाओगे!

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23 MAR 2022 AT 19:32

यूं संकुचित होकर ना बैठ,
तुम्हारी मन: स्थिति तुझसे कौन पूछेगा?
ठहर न जाना किसी एक बात पर,
तुम्हारे ठहराव का कारण जानने कौन रुकेगा?

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9 JAN 2022 AT 21:24

यूं ही नहीं हिचकियों की शिकायत है उसे !
उसको याद किए बिना नींद मुझे भी नहीं आती!!

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19 AUG 2021 AT 21:43

सारे जग को छोड़कर ,
मेरी ही आराधना में है क्या कमी?
सबको दर्शन देती हो,
मैं ही क्यों वंचित तेरे स्वर को भी देवी?

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14 AUG 2021 AT 8:22

उसकी यादों में शायद कोई और है,
अब मुझे हिचकियां नहीं आती।
पता बदल लिया है शायद उसने,
उस गली में अब नजर नहीं आती।

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1 JUL 2021 AT 19:25

खो जाता हूं सुनहरे कल की सपनों में,
कि मैं हूं सबसे उपर सबके नैनों में,
कि सारे दुःख दिखते मुझे कफ़नों में,
फिर सुबह होती है लौट आता हूं फ़सानों से!

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1 JUL 2021 AT 19:10

सांसों का चलना आज़ भी जारी है,
दिल का धड़कना आज़ भी जारी है,
तुम जो होते भी तो क्या, दुनिया जन्नत होती,
पुरी कायनात मुझे आज भी प्यारी है!

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