Suryaprakash Maurya   (Sur_कलम✒)
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Joined 1 July 2020


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Joined 1 July 2020
17 JUN AT 9:32

अब बीते दिन न बीते दर्द भी,
सबकी नजरों में मैं ही खुदगर्ज भी,

मन की बेबसी क्यों ना जाने कोई,
तकलीफ ना देता ऐसा कोई मर्ज भी,

मैं भी तो हूँ लाचार इस दिल के हाथों,
कहता थोड़ा सा है इसमें क्या हर्ज भी,

अब कोई ना समझें क्या बीता है मुझपर
शायद प्रेम के संग मिलता तन्हा कर्ज भी,

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8 JUN AT 13:20

कभी मिला था कोई साथ चलते चलते,
इन हवाओं के जैसे थे हम घुलते मिलते,

बहारों के मौसम संग खुब बिताये,
बाहों में कई बार देखा हमने सूरज पिघलते,

रात चांदनी के तकिये पर सर रख के सोये,
झील में तारों को देखा हमने कपड़े बदलते,

नींद खुली तो देखा थे खत कितने आए,
यूं तो शाम हो गई उन सब को पढते पढते,

था मिला जख्म हमें उन पन्नों के भीतर,
गिर पड़ा एक आंसू बेबस फिसलते फिसलते,

बाद उसके जीवन में पतझड़ भी आए,
वक्त लगा हमें खुद भी संभलते संभलते,

आज सब कुछ है मेरा पर बस वो नहीं है,
पर कोई शिकवा भी नहीं उनसे बिछड़ते बिछड़ते ।।

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8 JUN AT 12:24

रात गम भुलाने को
रूठे नींद से मनाने को,

चीखती है मेरी खामोशी की आवाज

ख्वाब पास लाने को,
सपनों में खो जाने को,

चीखती है मेरी खामोशी की आवाज

राह साथ जाने को,
अपनापन जताने को,

चीखती है मेरी खामोशी की आवाज ।।

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31 MAR AT 23:20

कुछ रास्ते तुझ तक जाते तो थे ,
पर ये कदम तुझ तक जा ना सके

मैं थक के हार बैठा अपने मुकद्दर से
ना जाने ये दिल मेरा क्यों आज भी ना थके ,

ना हम हमराजी थे कभी ना हमराज हुए,
मगर आशिकी का इल्जाम सर से हटा ना सके ,

बात कहनी खैर तुम से बहुत थी मगर ,
बात दिल की होठों तक हम ला ना सके I I

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30 MAR AT 1:02

ये अँधेरा घना अब है क्यों छा रहा,
मन बेबस सा हो के है क्यों गा रहा,

जब रूठी है किस्मत मोहब्बत की मेरी,
तो दर्द आँखों से रिसता है क्यों जा रहा,

भले पाना चाहा बस तुझे मैंने हर पल ,
मैं बेचारा ख़ुद ही से ख़ुद ही का ना रहा,

फिर क्या फकत ये बस अँधेरा मेरा है,
जो परछाई बन कर है साथ देता जा रहा

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26 MAR AT 12:00

अब प्यार में ना कोई मर्यादा,
अब प्यार हो रहा आधा आधा,

दिल टूटने से पहले हैं जुड़ने लगे,
है कितनी बदल गई परिभाषा।।

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25 MAR AT 2:09

एक सितारा मेरा भी था,
जो ज़माने में कहीं खो गया,

हम मुसाफिर जिस मंजिल के थे,
वो किसी और का हो गया।।

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23 MAR AT 0:51

मेरे दिल कि धड़कन में,
हर एक धुन तुम्हारी है,

मेरे सांसों से पुछु तुम,
छाई कितनी खुमारी है,

करूँ जब आँखें बंद अपनी,
दिखे एहसासों में तू ही तू,

लिए मोहब्बत का बस्ता
मंजिल इश्क़ ही हमारी है,


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23 MAR AT 0:41

ख़्वाबों को घर दिया होता,
बस इशारा कर दिया होता,

हम कभी होते ना तुमसे दूर,
जो बांहों में भर लिया होता …

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16 FEB AT 21:07

कभी किसी को कसम का वास्ता नहीं देना,
हजारों हैं हमारे ही हमें ये हौंसला नहीं देना,

मोहब्बत में मशगुल मुसाफिरों की महफिल में,
किसी को कश्ती का अपने किनारा नहीं देना,

हकीकत है हमें हमी से ही हर-पल डर लगता है,
खामखा ख्वाबों की खुशबू का खजाना खो नहीं देना,

बामुश्किल बचाया इस दिल को बेवफाई के बारिस से
तुम तासीर में तकदीर को तन्हा तड़पता छोड़ नहीं देना ।।

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