Surya Prakash   (Suryaa~सूर्या)
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Joined 13 March 2018


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Joined 13 March 2018
14 JUN 2023 AT 15:45

बड़े कलेजे कि बात है इस बेरहम दुनिया में मर्द होना ।
लड़कपन तो एक सा ही होता है हर किसी का अल्हड़, मनमौजी, चंचल सा ।

मगर ज़वानी औ बुढ़ापा खप जाए जिसकी, दूसरों को अपने जज़्बात जताने में, मनाने में, ना होके भी ख़ुद की गलती गिनवाने में, उसके लिए ख़ुद को साबित करवाने में और अकेलेपन में ख़ुद को उनके छोर जाने पर ख़ुद ही तसल्ली दिलवाने में…. ऐसी जानें कईयों पीड़ से भरा है जिसके दिल का कोना–कोना बड़े कलेजे कि बात है इस बेरहम दुनिया में मर्द होना ।

कुछ होते हैं ऐसे भी बिगरैल, बद्तमीज, मौकापरस्त….. कह सकते हो उन्हें तुम आवारा मगर वो मर्द नही होते ।
अच्छा! तो तुम अच्छे हो, सच्चे हो मतलब…कच्चे हो । ख़ुद को यूँ ज़माने के आसमां तले खुला ना छोरो, बड़ी खुदगर्ज, मुर्दा तूफ़ान चलती है यहां। ढह जाओगे, गल जाओगे बह के मिट्टी में कईयों की तरह मिल जाओगे ।

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24 MAY 2022 AT 4:31

हज़ारों भीड़ में हूँ... अकेला, कोई आवाज़ तो दे।
ज़ुबाँ से कह नही सकता, माना! फ़क़त कोई नज़र की आस तो दे।
मैं वो दरिया हूँ भूला सा, जहाँ हर अपनी प्यास बुझाने आते हैं।
पर कोई बादल भी तो हो रोज का, कोई मेरी प्यास की भी एहतियात तो दे।।

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30 APR 2022 AT 2:39

क्या कहूँ मैं क्या चाहता हूँ, बेइंतेहाँ बस तुझे चाहता हूँ।
बस एक तू है, कि समझ नहीं सकता।
इक मैं हूँ कि इजहार-ए-बयां कर नहीं सकता।
बस अब समझ भी जा......

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6 FEB 2022 AT 10:50

अलविदा.... सुर-सम्राज्ञी, स्वर-कोकिला...
🙏😔🌼🌹🇮🇳

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31 JAN 2022 AT 21:19

क्या ही बताएँ के अब हाल क्या है।
क्या ही पाया है और मलाल क्या है।

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12 JAN 2022 AT 17:26

यूँ क़रीब आ के दूर तू जाया मत कर।
नज़रों को मिला नज़र अपनी चुराया मत कर।
अरे! सब समझता हूँ मैं, जाना है तुझे…तो जा।
बस! बेवफ़ाई के लिए ख़ुद की मुझे आज़माया मत कर।

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11 JAN 2022 AT 11:04

लोग कहते हैं बहुत कम लिखते हो आजकल, शायरी छोर दी क्या?
अब! क्या ही बताऊ उनको, के शायरी नहीं ये दर्द-ए-बयां है साहब।
जब-जब छलकता है दामन भिगा के जाता है।

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10 JAN 2022 AT 10:08

ख़ुशी देखता हूँ सबकी, साथ मुस्करा मेहसूस भी कर लेता हूँ। 
मग़र मेरे मुकद्दर की यारी ही कुछ ऐसी है, उससे ग़म का दामन नहीं छूटता।

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10 JAN 2022 AT 0:48

ग़र जो दे सके किसी को कुछ, तो ख़ुशी के पल अता फरमाइएगा।
तक़्सीम-ए-ग़म का ठेका तो ज़माना लिए ही फिरता है।

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3 JAN 2022 AT 1:54

जैसे हर कोरे पन्ने का अंजाम अल्फाज़-ए-बयाँ होता है,
वैसे हर टूटे दिल का मुस्तक़बिल तन्हा होता है।

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