हद से ज्यादा विश्वास
“अंध विश्वास” बन जाता है.-
दिल में जो आया वो लिख दिया।
सुवाक्य -४२
जरुरत
जरुरत तो मुझे या तुझे सिर्फ ज्ञान की है,
ताकि उससे हर जरुरत पुरी हो सके...
कार्तिक शुक्ल षष्ठी, वि.सं. २०७८, बुधवार-
सुवाक्य -४१
सहिष्णुता
जरुरत से ज्यादा सहिष्णुता,
गुलामी का प्रथम चरण है.
श्रावण शुक्ल द्वादशी, वि.स.२०७७
गुरूवार, दिनांक : १९-०८-२०२१
सुरपालसिंहजी गोहिल-
सुवाक्य - ४०
संपत्ति
संपत्ति ऐसी अर्जित करे, जिसका आनंद
शरीर के साथ भी मिलता रहे और उनके बिना भी.
आषाढ कृष्ण पंचमी, वि.स.२०७८
बुधवार, ता.२८-०७-२०२१-
सुवाक्य- ३९
सारथी
सारथी, कभी तुम बनो, कभी में बन जाता हुं तुम्हारा,
आओ, साथ मिलकर विश्वरुपी कुरूक्षेत्र को जीत ले....
जयेष्ठ कृष्ण नवमी, वि.स.२०७७
शनिवार
ता.०३/०७/२०२१
श्री सुरपालसिंहजी गोहिल-
सुवाक्य - ३८
कल, आज और कल
कल के लोग आज के लिए जीते थे,
और आज के लोग कल के लिए जीते हैं.-
सुवाक्य - ३७
जिज्ञासा
शिष्य की जिज्ञासा
जब गुरु के सामने प्रगट होती है,
तो विश्व को ज्ञानरुपी
कल्पवृक्ष मिलता है.-
सुवाक्य - ३६
मुखावरण (मास्क)
मुखावरण लगाना तो सिर्फ बहाना है,
सही में प्रकृति से मुख दिखाने के लायक भी है?
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