सुरपालसिंहजी गोहिल   (सूर्या - जी)
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में ना कोई कवि हूं। ना कोई लेखक
दिल में जो आया वो लिख दिया।
Joined 27 December 2019


में ना कोई कवि हूं। ना कोई लेखक
दिल में जो आया वो लिख दिया।
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हद से ज्यादा विश्वास
“अंध विश्वास” बन जाता है.

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सुवाक्य -४२

जरुरत

जरुरत तो मुझे या तुझे सिर्फ ज्ञान की है,
ताकि उससे हर जरुरत पुरी हो सके...

कार्तिक शुक्ल षष्ठी, वि.सं. २०७८, बुधवार

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दुनिया ‘ हम ’ में बदल जायेगी...

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सुवाक्य -४१

सहिष्णुता

जरुरत से ज्यादा सहिष्णुता,
गुलामी का प्रथम चरण है.

श्रावण शुक्ल द्वादशी, वि.स.२०७७
गुरूवार, दिनांक : १९-०८-२०२१

सुरपालसिंहजी गोहिल

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सुवाक्य - ४०

संपत्ति

संपत्ति ऐसी अर्जित करे, जिसका आनंद
शरीर के साथ भी मिलता रहे और उनके बिना भी.

आषाढ कृष्ण पंचमी, वि.स.२०७८
बुधवार, ता.२८-०७-२०२१

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सुवाक्य- ३९

सारथी

सारथी, कभी तुम बनो, कभी में बन जाता हुं तुम्हारा,

आओ, साथ मिलकर विश्वरुपी कुरूक्षेत्र को जीत ले....

जयेष्ठ कृष्ण नवमी, वि.स.२०७७
शनिवार
ता.०३/०७/२०२१
श्री सुरपालसिंहजी गोहिल

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एक प्रश्न सा,
उत्तर की अभिलाषा में...

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सुवाक्य - ३८

कल, आज और कल

कल के लोग आज के लिए जीते थे,
और आज के लोग कल के लिए जीते हैं.

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सुवाक्य - ३७

जिज्ञासा

शिष्य की जिज्ञासा
जब गुरु के सामने प्रगट होती है,
तो विश्व को ज्ञानरुपी
कल्पवृक्ष मिलता है.

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सुवाक्य - ३६

मुखावरण (मास्क)

मुखावरण लगाना तो सिर्फ बहाना है,
सही में प्रकृति से मुख दिखाने के लायक भी है?

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