सुनहरा, चमकता, पर अकेला है चाँद...
झिझकता, शर्माता, हर रोज और निखरता है चाँद...
ये बिजली की कड़कन, घने- घने से ये बादल-
घने से अंधेरे में हर वक़्त, अकेले निकलता है चाँद........
इंतजार है, तपन है, जलन है, या है कोई श्राप?
कोई कहता, कोई सुनता, कोई लिखता है 'आज'
बताओ तो रुक के जरा, हमे - 'ए चाँद' !
की हो कातिल,हो मुंसिफ,या हो अपने चांदनी के क्या गुनहगार?
सुनहरा, चमकता हमेशा, पर अकेला क्यो है चाँद?
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