आगे बढ़ जाती है जिंदगी ,
पर किस्से जवानी के नहीं भुलाए जाते....
दफन हो जाते है दर्द कहीं दिल के कोने मैं,
पर कभी जान से प्यारे सजन भुलाए नहीं जाते....
यूं तो उस वक्त जिंदगी होते है वो ,
किस्से किसी के भी हो वक्त बीत जाने पर दोहराए नहीं जाते....
भ्रम है उसे भी मेरा की आगे निकल चुके है हम,
पर ये याद वाले किस्से किसी को सुनाए नहीं जाते....
मिटती है यादें तो बस जिस्म के साथ ही ,
किसी का और का हो जाने पर यूं ही नहीं फिर लम्हे वो दोहराए जाते....-
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इक रात अंधेरी सी ,
सब्र सवेरे का ...
कुछ 2–3 बजे का वक्त था उसके फेरे का...
निकाह तो कर रही थी ,
पर निगाहें हिसाब मांगती रही रात भर हर फेरे का....
मुसाफिर चल बसा था अगली गली का ,
उड़ी ना बात उसकी गली मैं क्यों की वक्त का था वो अंधेरे का....
उठने वाली थी ढोली उसकी ,
किसी ने चुपके से उसके कान मैं बताया,
हाल ये जुदाई मेरी का....
फिर रोई तो वो बहुत वक्त था सवेरे का...
विदाई थी या जुदाई थी बयां किसी से ना हो सका,
इंतजार था अब तो सबको बस कफ़न मेरे का...
विदा मुझसे पहले हुई वो ,
क्या फर्क पड़ा उसको जनाजे मेरे का....
बस ये तो इक रात थी अंधेरी सी.
अब वक्त हो चला है नए सवेरे का....-
नीले नीले बदल दा रंग भी हुन बदल चला ए...
सजन भी रूस्या ते रब भी रूस चला ए....
ढल गई ए शाम ते शरीर भी ढल चला ए,
कुछ दुनिया दे नाल ते कुछ आजकल खुद नाल मुकाबला चला ए....-
कुछ मजबूरी रही है जो आज ,
ये दूरी सही है....
कौन कह रहा यहां कि तू गलत है पर ,
कौन सा सूरी सही है...
फर्क हकीकत का ना जाना उस वक़्त,
तभी तो आज ये दूरी सही है...
आज पछताबा भी किस बात का जब कसूर ही अपना,
खैर मोहब्बत में ही तो मजबूरी सही है,
इश्क मुकम्मल हो भी जाता अपना अगर ,
फिर कौन सी मशहूरी सही है ....
सुना है मोहब्बत के किस्सों में हमने,
ये मोहब्बत अधूरी ही सही है....-
तेरी रूह तेरा जिस्म,
मेरा तों बस इम्तेहान हैँ...
कौन साफ दिल किसका नाम,
यहाँ तों सबका इम्तेहान हैँ...
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कुछ तों बात थी मुझमे शायद,
जो अब वो किसी और के होने पर मुझसे बात करती हैँ..
अब वो कभी कभी बात करती हैँ,
पर अब जो अधूरी रह गयी थी वो बात नहीं करती हैँ...-
तेरा मिलना मुझे,
यूँ फरिश्तों सा मिलना था....
और चले जाना,
किसी अर्थी के उठ जाने सा था.....-
यूँ तो इक़ मुराद पर टुटा तारा हुँ मैं....
बीच समंदर बेसहारा हुँ मैं...
बहती नदी सी हो गयी हैँ जिंदगी,
गिरते झरने का कभी सूखा किनारा हुँ मैं....
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बसंत बीता, साबन बीता...
अब ए सर्द रातें बीत रही हैँ....
तु भी तो अपना हाल बता,
क्या तेरी भी यूँ ही बीते रही हैँ.....
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सच बोल के गुनाह किया...
सब जान के तबाह किया...
कहीं खफा ना हो जाये मोहबत हमारी,
हर खता को माफ़ किया...-