ये हुस्न इश्क़ के चर्चे
छोड़े न किसी काबिल।
इस आग के दरिया में
मिले न कोई साहिल।
बंदगी कर खुदा की तू
क्यों हुआ इतना बेदिल
वक्त बदलता रहता है
कत्ल हो जाने
कब कातिल।
सुरिंदर
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#विरह_के_रंग
#कांच_से_अल्फाज
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दुनिया के डर से ,चुप बैठोगे कब तक।
और डरायेगी दुनिया, डरोगे जब तक।
क्या है मन में ,जानता है सब रब
कैसे छुपेंगे गुनाह, कर रहा तू अब।
दुनिया का क्या ,ये कब हुई किसी की
जिसने इसको ठगा , भयी बस उसी की
सुरिंदर
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ख्यालों की बारिश में मैं तन्हा उदास।
इक तेरे मिलन की है मुझे प्यास।
भिगो कर रख दिया ,तेरे ख्यालों ने
कुछ अनसुलझे ,अजब सवालों ने।
रात भर इक चांद का था साया रहा
इश्क़ का इक ज़ख्म ही नुमाया रहा।
उठ कर चला गया कोई करीब से
ख़ामोश डर रहा हूं मैं सलीब से।
ख्यालों की बारिश में भीगा हुआ मैं
तन्हा उदास सा जीता हुआ मैं।
सुरिंदर-
कुछ अनकहे एहसास , बिखरे हैं अंदर।
सन्नाटे को चीरते हुए, शोर के समंदर।
surinder
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चेहरे पढ़ने की आदत हम में कमाल है।
बेपरदा हम सामने हर दिल का हाल है।
तन्हा रह कर देख लिया इस शहर में
साया भी साथ न हो ,तो जीना मुहाल है।
हर चश्म ए तर में डूबे हैं सुनहरे ख्वाब
कांपते लबों पे , हर कहानी बेमिसाल है।
झूठों की भीड़ में ,सच पहचानते रहे
आईने को इस बात का बहुत मलाल है।
सुरिंदर को अब जहां में गिला नहीं कोई
वो मुस्कुरा रही है ,यही उसका जमाल है।
सुरिंदर कौर-
शुभ घड़ी
शुभ घड़ी जीवन में आई,
तेरे संग ज़िंदगी मुस्कराई।
हाथों में मेंहदी है लगाई,
हर राह पर चाँदनी छाई।
झूम के ली मैंने अंगड़ाई,
पायल की झंकार सुनाई।
चंचल नवयौवना भायी,
ऐसा क्या जो तू ले आई?
सपने सारे मैं ले आई,
तेरे संग गृहस्थ बसाई।
आँगन में बेला महकाई,
मायके के लिए हुई पराई।
ऐसी शुभ घड़ी है आई।-
काश मुझे समझा होता वो शख्स।
कैसे चुपके से हुआ ,दिल पे नक्श।
पढ़ता मेरी आंखों में ठहरे दर्द को
लिखता वो एहसास हो गये सर्द जो।
क्यूं न समझ आई उसे मेरी वफाएं
गूंजती रही तन्हा सन्नाटे में सदाए।
इश्क़ का दीया जलता दिल के बाम
चुपके से चल देता हाथ मेरा थाम।
आज तन्हा हम खड़े, भरे भरे हैं नैन
इतनी बड़ी दुनिया में न मिला चैन।
सुरिंदर
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मासूमियत उसकी देख कर ,दिल हार बैठे हम।
इक अजनबी चेहरे पर ,सब कुछ वार बैठे हम।
आंखों में उनकी जो देखा ,तो डूबते ही हम गये
कैसे तुमको समझाए , कर तकरार बैठे हम।
बात बात पर कहकहा,ये उनकी थी इक अदा
हंसी हंसी में ही बस , कर इकरार बैठे हम।
पलट कर उनका देखना ,ले गया दिल निकाल
हैं उनको भी मोहब्बत, कर एतबार बैठे हम ।
मालूम जब से हुआ है,दिल थाम कर बैठे हैं
पंछी उड़े अपने धाम ,बस इंतजार में बैठे हम ।
सुरिंदर कौर
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जो वो ख़फ़ा है ,मैं भी ख़फ़ा हूं।
पिछले जन्म का मैं रतजगा हूं।
मैंने बहुत बार कान्हा को पुकारा
बैठा नहीं कभी तालमेल हमारा।
बांसुरी तेरी छेड़े मन के मेरे यार
कभी तो आंखें ,अंगना फेरा डार।
हमसे तो प्यारा तुझे गाय,माखन
हमारी चाहत लगे तुम्हें बेकार।
तेरी नाराजगी से भी है हमे प्यार
खफ़ा नहीं होता ऐसे कृष्ण मुरार।
🪈🪈🪈🪈🪈🪈
सुरिंदर
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मेरी आंखों में आंसू हैं
पूछोगे नहीं क्यूं??
डर लगता है न
,कहीं सवाल तुम तक ही न आ पहुंचे।
तुम्हारी ग़लत बात को ग़लत कह दिया,
या फिर इतनी लेट कैसे हो गये?
आज शराब फिर पी तूने?
पैसे कहां खर्च कर दिए?
चिढ़ होती है इन सवालों से!!!
मुझे भी होती है
जब मैं काम पर से काम पर ही लौटती हूं
तरकारी भांजी, बच्चो का असाइनमेंट,
स्टेशनरी,घर का राशन
कंधे पर लादे लौटती हूं
अपनी एक नौकरी से दूरी नौकरी पर
तुम्हारे भी यही सवाल होते हैं रोज़
मैंने समझा लिया खुद को
तुम्हारा मारना ,चीखना ,चिल्लाना
ये मान कर
तुम्हारी तो आदत है!!
फिर जब मैंने सवाल किये तो
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सुरिंदर कौर
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