सुरेश चौहान   (सुरेश चौहान ✒️)
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Joined 10 February 2018


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Joined 10 February 2018

जब से तेरी यह नज़रें जो मिलीं हैं मेरी इन नज़रों से,
शर्मो हया खो बैठे हैं ऐसे कि अब कोई डर नहीं हमें इस ज़माने से।

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जो पल बित गए चलों उसे आज फ़िर से ताज़ा कर दो,
आज हम कुछ नहीं कहेंगे बस आज तुम्हीं जरा सुना दो।

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जीवन में कही सूर्योदय होते हैं तो कही सूर्यास्त भी होते हैं
कुछ ऐसे लम्हें मित्रों के बिना गुजर नहीं पातें हैं
अपने जीवन के तमाम लम्हों को समेट कर देखूं तो
जीवन में आप जैसे दोस्त हमें बहुत याद आते हैं
इस जमाने से तो हम कब के गुजर गए होते
यदि आप जैसे दोस्त हमारे साथ नही होते
बस बंधे हुए है हम दोस्ती के इन धागों मे
वरना हम तो कब के बिखर के चूर चूर हो गए होते
दोस्त होते हैं तो कही सुर्योदय होते हैं तो कही सुर्यास्त भी होते हैं।

Happy friendshipday....
🤝🏻

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बिना कहे हि जो अपना दिल-ए-हाल समझ सके।

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तेरी अंगड़ाइयां अक्सर मुझे तो सचमुच ले डुबेगी,
खता क्या हो गई है हमसे जो सज़ा जिसकी इतनी भारी है।

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सूकुन तो यही था पर ढूंढते हम कही और ही रहे थे,
मिला अब जाकर हमें जब तेरी पनाहों में मौजूद हम थे।

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शाम ढले पिया मन को हैं भाएं
यादों का पिटारा भी खुलता जाएं
मन का यह मोहन मधुर राग सुनाएं
शाम का आलम कुछ ऐसा होता जाएं।

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वो
क्या जाने
मोहब्बत के राज
जिसने कभी की नहीं
करके देखो तुम एक बार
जान जाओगे तुम इसके सारे राज
यह मोहब्बत का खेल मोहब्बत से खेलो
बिना इसके आपके सर पर नहीं सजेगा ताज
जीतकर भी हार जाओगे जब मोहब्बत नहीं होगी साथ।

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मदहोशी के इस आलम में होश अक़्सर रहता है किसे,
चाहकर भी दूर जा सकते नहीं तेरा यह बदन मुझे तेरी और हैं खींचे।

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मुलाक़ात चाहे पहली हो या फ़िर आख़री,
फिर भी चाय तो आखिर उबालनी होगी पुरी।

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