जिंदगी हार कर भी जीती जाती है।।
पतझड़ के जाने पर ही बहार आती है।।
"बारिद"...369-
बड़ा सम्भाल कर रखा था दिल तिजोरी में हमने....
कमबख्त ने आकर महज नजरों से चुरा लिया।।
"बारिद"...369-
मरने से पहले मर रहा हूं।।
इतना घुट घुटकर जी रहा हूं।।
गिरने को तैयार हे छत घर की...
दीवारों से ये बात सुन रहा हूं।।
"बारिद"...369
-
नींद से गुजारिश बस इतनी है हमारी।
आना तो कुछ इस तरह से आना।।
कि हमको फिर जगाने के लिए...
लोगों को आंखों से दरिया पड़े बहाना।।
"बारिद"...369-
खामोश रहकर लोग " लाजवाब" बन जाते हैं।।
जवाब देने से कई रिश्ते बेवक्त बिगड़ जाते हैं।।
यूं तो बादलों का बारिश से ज्यादा होता हे शोर...
मगर बारिश की बूंदों से कई दरिया मचल जाते हैं।।
"बारिद"...369
-
ना संभाल कर रख पलकें वो तोहफा।।
जिसको हिफाजत से रखने को किसी ने दिया था।।
"बारिद"...369-
जिसने चांद को न देखा कभी गौर से,,
वो तारे आसमान के गिनाने लगते हैं।।
नए अमीरों के घर जाकर देखा हे हमने...
हर सामान की कीमत बताने लगते हैं।।
"बारिद"...369-
आईने को अपना समझने का सिला।
हमको देखो क्या खूब हे मिला।।
जरा सा हम हुए जब उससे दूर....
किसी और के गले लगते हुए मिला।।
"बारिद"...369-
किसके हक में सुनाऊं फैसला...
हर शख्स गुनाहगार लगता है।।
बदन पे छिड़ककर इत्र खुशबूदार...
कागज का फूल भी महकता है।।
"बारिद"...369
-
मैं हिसाब नहीं रखता गुजरे हुए पलों का।।
ढेर क्यों लगाऊं घर में चुकाए हुए बिलों का।।
"बारिद"...369-