मेरी लाडली बेटी की सगाई
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झूठ मुझको भाता नहीं।।
सच बोल वो पाता नहीं।।
हाथों की लकीरें देखकर भी मेरी,,
यकीन मेरे इरादों पर उसको आता नहीं।।
"बारिद"...369
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मेरे घर में लगाकर वो आग।
चराग़ अपने रोशन कर रहा है।।
दुआओं में फिर भी खुशियां उसकी मांगी,,
जो ग़मों से मेरा दामन भर रहा है।।
"बारिद"...369-
बर्दास्त नहीं वो हवाएं भी मुझको।
जो छूकर मेरे मेहबूब का दुपट्टा जाए।।
किताब हे अनमोल वो मेरी जिंदगी की।
ना कोई उसका एक पन्ना भी पढ़ पाए।।
"बारिद"...369
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सांसों से पूछा मैंने एक बार।
कितना करती हे तू मुझसे प्यार।।
जवाब...
ना करना एक पल भी मेरा एतबार।
दुनिया में नहीं कोई मुझ जैसा बेवफा यार।।
"बारिद"...369-
कली से वो फूल बनकर ऐसे खिल रही है।।
कि टहनी भी उसके प्यार से देखो मचल रही है।।
"बारिद"...369-
बड़े बुजुर्ग थे मेरे खयाल।
मगर ख्वाहिशें जवान रखी।।
ना धूल छाने दी उसकी तस्वीर पे कभी,,
ना ही उतारकर दीवार से आलमारी में रखी।।
"बारिद"...369-
हवाओं के डर से चिरागों को बुझाया नहीं करते।
सितारों का शौक रखने वाले आसमां को हिलाया नहीं करते।।
समंदर बनने की ख्वाहिश हो अगर दिल में...तो
दरिया को इशारों से करीब बुलाया नहीं करते।।
"बारिद"...369
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मेरे चश्में के नंबर उस दिन बढ़ गए।।
जब अपने ही मेरी नजरों से दूर हो गए।।
"बारिद"...369-
इतनी दौलत कहां से लाते हो,,
कि दर्द मेरा खरीद कर ले जाते हो।।
समेट लेते हो बेचैनियाँ मेरी सारी...
दामन मेरा खुशियों से भर जाते हो।।
"बारिद"...369
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