जब आँखें लगे बहने और पलकें हो जाए नम।।
सवाल जज्बातों से करना,क्या माजरा हे मेरे हमदम।।
"बारिद"...369
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मेहरबान तो आसमान बहुत था मुझ पर,,
मगर जमीन नीचे से खिसक गई।।
"बारिद"...369-
सबने साथ छोड़ा सिवा तेरे गरीबी...
फिर तू क्यों हमसे इतनी वफादारी निभा गई।।
"बारिद"...369-
बड़ा शोर कर रहे थे जेब में पड़े सिक्के।
सोचा आसमान में इनको उछाला जाए।।
हवाएं करेगी फैसला किस्मत का इनकी,,
इंतजार जमीन पर गिरने का किया जाए।।
"बारिद"...369-
बाप के लिए फूल होती हे बेटियां,,
कुछ लोग वजन समझ लेते हे इनको।।
"बारिद"...369-
जरा सा कदमों को थी बहकाने की बात,,
उसने जमीन पर गिराकर ही दम लिया।।
"बारिद"...369
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कई हसरतें रह गई अधूरी बेवक्त उसके चले जाने से,,
अब गुजारिश यही खुदा से हसरतें अधूरी ,पूरी कर दे।।
"बारिद"...369-
लतीफे सुनकर भी नहीं आती अब हंसी।।
खुशियां मुझसे इतनी दूर जाकर हे अब बसी।।
"बारिद"...369
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आईने से महज एक गुजारिश हमने ये की,,
उस वक्त हंस दिया कर,जब हम रोते हुए पास तेरे आएं।।
"बारिद"...369-
मेरे ख्वाबों से उसको तकलीफ थी बहुत,,
ख्वाबों को ही दूर हमने आंखों से कर दिया।।
"बारिद"...369-