बस एक ही सवाल है यहाँ सबके चेहरे पर।
क्या बदल जाएगा मेरा किरदार किसी के कहने पर?
मैंने खुद को गढ़ा है हर एक चोट सहकर,
कैसे मिटा दूँ वो सफर जो तय किया था चलकर?
कुछ ने कहा झुक जाओ, कुछ ने कहा बदल जाओ,
पर मैं तो वो दीया हूँ जो ज़िंदा है आँधियों में जलकर ॥
मैंने सीखा है जलना अंधेरों के खिलाफ,
हर हालात में यही सीखा है उठना गिरकर ॥
मेरे हौसलों को जरा देखो, आज सवाल खुद डरते हैं,
जो कल मुझे गिरा रहे थे वो सलाम करते हैं झुककर ॥
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मनामध्ये तू अन्
खिडकीत खिळलेली नजर ।
क्षणोक्षणी भास तुझा
अवती भोवती तूच हजर ॥-
दिल से दिल के रिश्ते का चेहरा नही होता
कही अधूरा तो कहीं कहीं गहरा नही होता ॥
अब तक जो जी चुका हूँ, सासें गिन रहा हूँ मैं
आख़िरी साँस का पल कभी ठहरा नही होता॥
उसकी तरफ़ गया हूँ अपना समझकर उसे मैं
मेरे वापसी पर कोई वक़्त का पहरा नही होता ॥
धर्मों के नाम पर आदमी की भी पहचान कोई
सरहदों पर आतंक का कभी चेहरा नही होता॥
मत पुछो कल रात को टूटा था इक प्याला
“सुर” मैकदें में टूटे दिल का सेहरा नही होता ॥-
कोण वेडं होणार नाही
पाहून अवकाळी पाऊसाची अदा।
विज पण बावरली थोडीशी
धावली धर्तीवर होऊन फिदा ॥-
असाच अवकाळी
होतो “मी” मुसळधार ।
गवसणं घालतो पावसाला
तिचा स्पर्श आहे उधार ॥-
महफ़िल ही माझी नव्हती
तरी अवकाळी आलास तू ।
विखुरलेस थेंब भुईवर अन्
शायराना झालास तू ॥-
एवढं सोपं असतं का ?
असं अवकाळी धावून येणं ।
ऊर भरलं असताना
आनंददायी थेंबांच देणं ॥
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