बोझिल मन ,हल्का हो जाता है रोने के बाद,
बादल छट जाता है जैसे,बारिश होने के बाद।
आसानी से मिली वस्तु, महत्वहीन लगती है,
श्रम का मोल पता चलता है कमाने के बाद।
दरख़्तों के साये में, धूप का असर नही होता,
घर झुलस जाते हैं, बुजुर्गों के जाने के बाद।
ग़ैरों के लिए अपनो का तिरस्कार ठीक नहीं,
अहमियत समझ में आती है ,खोने के बाद।
घाव मामूली हो तभी ,मरहम पट्टी कर लीजे,
जखम् नासूर बन जाते हैं...,गहराने के बाद।
धुआँ-धुआँ रह जाओगे,ख़ुद भी सदियों तक,
दर्द की आग में अपनों को , जलाने के बाद।
_ सुलेखा
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