किया था जो तुझसे वादा,
निभा रही हैं वो लड़की ।
चुप सी रहती हैं,
खिलखिला कर हँसा करती थी जो लड़की ।
कहती नहीं कुछ किसी से,
घण्टों तुझसे बातें किया करती थी जो लड़की ।
अपनों में भी अंजानी सी लगती हैं,
अजनबी को भी अपना कर लिया करती थी जो लड़की ।
सुद नही हो जैसे उसे कोई अपनी,
सबके चेहरे कभी पढ़ लिया करती थी जो लड़की ।
वक़्त का असर न ही रहा उसपर,
कि तुझसे अब तक इश्क़ करती है वो लड़की ।-
कि बात जो न कही जायें लबों से........
के चुभती हैं वो फूलों में लगे काटों सी।-
के हम जैसे हैं
सहज़ वैसे अपनाएं।
भले न बने सुबह खुशियों की
मगर संग उसके दुखों की रात कट जाएं।।
काश ! ये काश सच मे बदल जाये......-
इत्तेफाक जैसा कुछ भी नही,
जानते है हम ।
हर घटना होने की वज़ह है कुछ,
मानते हैं हम ।
पर पहली नज़र में सब इत्तेफाक ही लगता हैं।।
हुआ क्यों?
इसका पता तो काफ़ी बाद में चलता है।
तब तक वो इत्तेफाक
बन चुका होता हैं ।
किसी की यादों का न
भुलाने वाला लम्हा।
जो कभी खूबसूरत तो कभी,
दर्दनाक भी हो चलता है ।
लगता है हमे अब कुछ यूं कि
इत्तेफाक भी इत्तेफाक से नही
हुआ करता हैं ।।-
यांत्रिकरण के इस दौर में
यंत्रों संग......
मनुष्य भी यांत्रिक हो चला हैं।-
एक तेरे दर्शन को ही अभिलाषी हम...
मिल जाये जो साथ तिहारा,
भव सागर से तर जाएं हम।
अंश हम तेरे आज तक है ये सुना,
अब तुझमे ही कहि समा जाएं हम।।-
भाव अभिलाषी तू, है कैलाश वासी तू
गंग जटा में,विष कोलाहल कंठ में धारे
श्रृंगार भस्म का करे,त्रिशुल हाथ मे विराजे
नाम है तो अनेक तेरे, "बाबा" सबका तू लागे
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उस परिंदे से पूछो
चाहत जिसकी आसमानो को थी छूना
क़ैद अब जो इस पिंजरे में हो चला हैं
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