Surbhi Singh   (सुरभि सिंह ✌️)
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Joined 18 June 2019


Joined 18 June 2019
14 JAN 2023 AT 13:00

मुझे शौक नहीं किसी तरह के इंतेकामों का
मैं ज़िक्र नहीं करती उन मसलों तमामो का
मेरी सादगी मुझे किसी दिखावे से प्यारी है।
जहां शब्दों के मायने नहीं
वहां चुप रहने में समझदारी है ।

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20 MAR 2021 AT 12:59

कभी बैठे बैठे यादों में खो जाती हूं
कभी खुद को बहला कर सो जाती हूं

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18 MAR 2021 AT 23:26

इतनी दफा टूटे हैं..अब कोई गुंजाइश थोड़े ही है
अब जिंदगी जिए जा रहे हैं.. कोई फरमाइश थोड़े ही
हंस कर बात तो यूं करते हैं सभी से ..पर सबसे वफा थोड़े ही है
बन जाएं जो फिर मजाक .. कोई पहली दफा थोड़े ही है

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16 MAR 2021 AT 20:46

वो फूलों की बात करता है
मैं महक उठती हूं उसके पास होने से
नज़रें नहीं मिलाती कि खो न जाऊं उसमें
और डरती भी हूं ये इत्तेफाक होने से

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16 MAR 2021 AT 20:35

क्या पूछते हो किस्से, कुछ यूं हमारी कहानी है
गिरे , टूटे , समेटे गए और फिर टूटे...बस यही रवानी है
लिये तो फिरते थे हम भी दिल ... अब क्यों इसे पत्थर कहते हो
फितरत नहीं हमारी बदल जाना.. ये सब तुम्हारी निशानी है

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5 MAY 2020 AT 17:34

नहीं तकती राहें सूरज की , हर दीप मेरे में आशा है
है नहीं यक़ीन तकदीरों में , मैंने खुद ही लकीरों को तराशा है

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19 APR 2020 AT 15:10

संकट की ये घड़ी कड़ी है
विपदा जग पर आन पड़ी है
एकजुट होकर दिखला दो
मानवता की ओज बड़ी है
मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं
ईश्वर भी रूप बदल रहा
खाकी पहने सावधान करे
वो पहन सफेदी लड़ रहा
घर में सुरक्षित हर जन होगा
ना आपदा को न्यौता दो
विपत्ति में चौकों नहीं
तुम विपत्तियों को चौंका दो

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30 MAR 2020 AT 16:10

चली जाती हूं उधर , जिधर मेरा सपना ले जाता है
नहीं होती फिक्र रास्तों की , उधर मेरा मंज़र नज़र आता है

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22 FEB 2020 AT 23:55

दीदार ए हुस्न को तरस गए वो जो शाम से हाथों में जाम लिए बैठे थे
महबूबा के आते ही जाम भी खनककर बोले वाह भाई क्या इंतजाम किए बैठे थे

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10 NOV 2019 AT 15:43

शब्दों का काफिर हूं
जज्बातों की गलियों में मेरा आना जाना है
है कलम मान लो दिल मेरा
कागज ही इसका ठिकाना है

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