मुझे शौक नहीं किसी तरह के इंतेकामों का मैं ज़िक्र नहीं करती उन मसलों तमामो का मेरी सादगी मुझे किसी दिखावे से प्यारी है। जहां शब्दों के मायने नहीं वहां चुप रहने में समझदारी है ।
इतनी दफा टूटे हैं..अब कोई गुंजाइश थोड़े ही है अब जिंदगी जिए जा रहे हैं.. कोई फरमाइश थोड़े ही हंस कर बात तो यूं करते हैं सभी से ..पर सबसे वफा थोड़े ही है बन जाएं जो फिर मजाक .. कोई पहली दफा थोड़े ही है
क्या पूछते हो किस्से, कुछ यूं हमारी कहानी है गिरे , टूटे , समेटे गए और फिर टूटे...बस यही रवानी है लिये तो फिरते थे हम भी दिल ... अब क्यों इसे पत्थर कहते हो फितरत नहीं हमारी बदल जाना.. ये सब तुम्हारी निशानी है
संकट की ये घड़ी कड़ी है विपदा जग पर आन पड़ी है एकजुट होकर दिखला दो मानवता की ओज बड़ी है मंदिर मस्जिद बंद पड़े हैं ईश्वर भी रूप बदल रहा खाकी पहने सावधान करे वो पहन सफेदी लड़ रहा घर में सुरक्षित हर जन होगा ना आपदा को न्यौता दो विपत्ति में चौकों नहीं तुम विपत्तियों को चौंका दो