फिर से वो जीत गये और मैं हार गयी !
कितनी खुशी की बात है ना तेरे लिए जिंदगी
देख ,वो बचपन का अकेलापन , आज हमराह बन गया !
पस्त पड़ा आत्मविश्वास ,
धड़कने बदहवास ,
यूँ ज़ुबान मे नमकीन स्पर्श ,
धुंधला संदर्श
मेरी औकात बता गया !
सुन लो ऐ हमराह ,
अकेला होना अधूरा नहीं ,
परछाई का साथ ,बुरा नहीं
ये जीवन की सूनी पगडंडी
अनजान है ,
कि हर मोड़ की खंडी
को छांट
डर बेजान है।
-