इस बार मुझे कुछ और नहीं चाइए था,
चाहिए थी किताबें, बहुत सारी किताबें।
और कुछ वक़्त, उन किताबों के साथ बिताने के लिए।
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मैं खुश हूँ
किसे पता?
कौन जानता है?
कहाँ है उदासी?
क्या कोई उसे पहचानता है ?
ढूँढ पाओ तो पास रखना थोड़ी देर ।
खुशियों की अहमियत शायद वही समझाता है ।
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हज़ारों चाहतें थी, मगर
उन सब में अहम
तुम्हारे साथ होना उम्र भर के लिए
मेरी पहली चाहत थी ।-
रिश्ते शायद कभी निभाये ही नहीं गए लोगों से
निभाई गई बस जिम्मेदारियाँ
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होश लापता है
और हम भी गुमनाम कहीं
सब कहते तो हैं के अपने हैं
कहाँ कोई कहता है ख़ुद को अनजान कोई
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If you are roaming confidently on a wrong path, you can enjoy the journey but only the right path will take you to the desired destinations.
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कभी सोचा है
इस बड़े से शहर में अगर कभी गुम हो गये,
तो ख़ुद को ढूँढ पाओगे क्या ?
अपनाया तो है तुमने बड़े ईमान से इसे,
उतनी ही तवज्ज़ो तुम्हारी, उसके ज़ेहन में भी हो ।
ऐसा कुछ कर पाओगे क्या ?
तुम देते तो हो हर किसी का साथ
पर अगर कभी तुम्हें ज़रूरत होगी
तो हक़ से किसी को बुला पाओगे क्या?
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तो इस बार जब मैं लौट रही थी
मैंने कहा उस से
के
कभी फ़ुरसत हो अगर तो हमारे शहर आना ज़रूर
घूमना उन गलियों में कभी जिसका ज़िक्र किया था तुमसे
हुबहू दिखता है क्या ? लोगों में सुनाना ज़रूर
हा शायद तब कुछ मतलब नहीं होगा इन बातों का
पर फिर भी
अगर कभी मेरी याद आए तो बताना ज़रूर
मिलेंगे तो हम अब हमारे शहर में भी नहीं तुम्हें
पर कोई पूछ ले मेरे बारे में तो मेरा ठिकाना बताना ज़रूर
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मख़्सूस वो आज भी है मुझमें
कभी बात हुई तो जान पाओगे
बातें तो मैं करूँगी
और
बातों में
कई सारी बातें उसकी आज भी है मुझमें-