लोग अपनो को पहचाना भूल रहे,
रिश्तों में दरार शायद ये आम हो रखा है
बड़े होते ही वो बचपन वाला प्यार भुला रहे
माँ-बाप का
शायद कुछ गरबर है जनाब
या बोलो बदलते समय की बदलती करवटें है|-
मैं लिखती हूँ, शायद लिख कर बयाँ कर पाती हूँ
बोल कर लोगों को अपनी बातें बस खुद को खोलखा पाती हूँ।
ये डायरी के पन्ने ही हैं, जो मेरे बातों को समझते ना डर है, बातों के मज़ाक बनने का
ना ही दूसरे अनजान के कानों तक जाने का पर एक बात मुझे पता चला शायद लिख कर मुझे हर बात का हल पता चल जाता है।
इस जीवन को गणित के समीकरण क्यूँ बनाना, आखिर सबके हल करने के तरीक़े अलग है।-
There is always inner Shakti within us in spite of whether we are embracing it or not...
✨✨
Whenever you feel low embrace yourself ◉‿◉
Rather than finding help of external source ✨✨
As we are always going with our soul & body ...-
ये क़दम क्यूँ डग-मग करने लग गए ....
क्या इसे ही अनंत समझ लूँ
नहीं ना...
हिम्मत रख ख़ुद के लिए मदद
का हाथ बढ़ा
क्या विराम ही अंत है
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ये जो इंसान है न,
वो भी अनेक किरदार निभाता है।
और ये जो मुस्कुराहट है
वो भी मुखोटे से कम नही...
बोले भी तो किसी बोले अपने मन की बात....
लोगों को तो दुख में भी प्रतिस्पर्धा करना है...
तो मुस्कुराहट से छिपा जाता है बातों को-
उस प्यार की संवेदना बचाये रखना...
उन दिनों को न भूलना,
लिखे जब तेरे नाम ख़त,
थोड़ी वेदना बचा रखना।-
अरे ओ मेरे दोस्त,
संग रहना मेरे
वैसे ही ...
जैसे कलम संग स्याही
बाग़ में फूल
अपना अस्तित्व हमेशा मेरे ...
जीवन में बनाये रखना
अरे ओ मेरे दोस्त।
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ना ही जी भर रोने देते हो,
ना ही मुस्कुराहट ठहरने देते हो होटों पर,
ना ही कोई पराया भाता है,
ना ही कोई अपना,
दिल बता दे तुझे गम क्या है।
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उसके सुख दुख को अपनाने लगते हैं
उससे अपना चुना हुआ परिवार मानने लगते हैं
उनके चेहरे की खुशी हमें सुकून दे जाती है।
उनके ग़म अपने से लगने लगते हैं।-
सुहाना सा , अपने मन के ख़्वाब जैसा
वो सपनों के दुनिया का सफ़र
जिसे हक़ीक़त में तब्दील करना है।-