suraj upadhyay   (सूरज)
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Joined 21 January 2019


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18 MAY 2021 AT 22:40

आर्यभट्ट, तुम्हे फिर से आना होगा,
इक नया अंक ईजाद करना होगा,
तुम्हारे बनाये शून्य से, हमने जो सीखा,
उससे हमनें, लाशें गिन डाली,
और गिन डाली इंसानियत का बौनापन,
किसी की सुनी कोख,
तो किसी का उजड़ी माँग गिन डाली,
किसी की राखी,
तो किसी की गुड़िया गिन डाली,
और गिन डाले है,
उनसे जुड़े जज़्बात-ओ-ख्यालात,
इसके अरमान गिने,
उसके सपने गिने,
जो अनगिनत थे कभी, उनको भी गिने,
गिनतियाँ खत्म हो चली हैं,
किन्तु लाशें खत्म नही होती,
सिसकियाँ खत्म नही होती,
न खत्म होता है,
टूटते हुए हौसलो का ये दौर,
आर्यभट्ट, तुम्हे फिर से आना होगा,
इक नया अंक ईजाद करना होगा,
तभी तो मानवता,
बौनेपन के इक नए मुकाम को गिन पाएगी,
और जान पाएगी, खुद को इक नए सिरे से ।

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17 MAY 2021 AT 1:24


सुनो, तुम मेरा नाम गिनती रख दो,
आँकड़ो या किसी संख्या का हिस्सा नही,
बस गिनती रख दो ।
शायद मुझे, गिनने की ये जो कला है, आ जाये,
या फिर ये जो डर है मुझमे, इन गिनतियों को लेकर, वो हट जाए,
देखो, तुम समझ नही रही, अंत मे तो हम सब गिनती ही है उनके लिए, है न, ?
और वो, गिनती के जानकार, वो भी तो रोज यही बताते है,
आज इतने हजार पॉजिटिव हुए,
उतने हजार गंभीर अवस्था मे है,
इतने हजार मारे गए,
इतने हजार लोगों के लिए दवा नही,
उतने हजार लोगो के लिए वैक्सीन नही,
इनके कुछ नाम गाम नही होते,
इनका कुछ है तो बस एक गिनती,
मैं गिनती बन, इनका हो जाना चाहता हूँ,
जो किसी सरकारी फाइलों में अब छपकर रह जाएंगे,
सवाल करेंगे, अलमारियों के दरवाज़ों से,
उन्हें वहाँ सुनने वाला कोई नही होगा,
मैं गिनती बन ,इनको सुनना चाहता हूँ,
इन्तेजार चाहता हूँ, शायद फिर कोई नई गिनती निकले,
इन पुरानी गिनतियों को सुनने के लिए,
इनकी बात करने के लिए ।
सुनो न, ये सूरज नाम, अब कुछ खास जमता नही मुझपर,
इसके पहले की मेरा वजूद गिनती बन जाये,
तुम मेरा नाम गिनती रख दो ।

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31 JAN 2021 AT 2:21

तुम उससे किये वादे पर रो रहे,
यह बताओ, एक वादा तुम्हारा खुद का था खुद से,
उसका क्या हुआ ?
कौन सा वादा था, क्या था, कब था,
के झंझट में नही डालूँगा तुम्हे,
बस इतना बताओ याद है या भूल गए,
अपने इस वादे के तोड़ने का लेश मात्र भी दुख नही तुम्हे,
ना ही तुम सोचते हो, ना उसे ठीक करने का कोई जतन,
क्या खुद से मोहब्बत इतनी सस्ती हो गयी है ?
खुद से किये वादे की परवाह नही,
और चाहते हो दुनियाँ अपने वादों ओर टिकी रहे ?

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28 JAN 2021 AT 11:11

कुछ लम्हो के बाद,
इंसान बदल जाता है ।
तुम, मेरी जिंदगी का,
वही लम्हा हो ।

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28 JAN 2021 AT 10:41

थोड़ी सी मुहब्ब्त, अब भी बाकी है मुझमे,
तुम कुछ ऐसा करो, की वो भी खत्म हो जाएं,
तुम्हारे लम्स के निशान अब भी है मुझमे,
दुआ करो, कि वो जख्म हो जाए ।

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27 JAN 2021 AT 14:24

बहुत हुआ, कहांनियों को मुकम्मल करना,
अब किस्सा नही, किरदार ही बदल देंगे ।

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13 AUG 2020 AT 15:17

और वो अंकल,

("शीर्षक में पढ़ें")

वही जिनकी दुकान से तुम्हारे लिए कैडबरी लिया करता था,
जिनसे तुम झगड़ा करने लगी थी,
कितने साल पुराना कैडबरी है अंकल,
कीड़े निकल रहे इसमें,
आपको पता है ना, ये कैडबरी मेरे लिए होते है,
उनकी दुकान भी अब तोड़ दी गई है,
जमीन पर बिछाए सीमेंट के चादरों के आड़े आने लगी थी,
बचे हिस्से में बैठे अंकल को देखता हूँ, तो लगता है,
जैसे वो भी इन्तेजार कर रहे है तुम्हारे आने का,
इक कैडबरी अभी बाकी है उनकी तुम पर,

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8 AUG 2020 AT 1:41

याद है वो इक दिन,
जब मैंने आखिरी बार तुम्हे कॉल किया था,

(शीर्षक में पढ़ें)

शायद कुछ कहना था हमे,
मुझे तुमसे,
तुम्हे मुझसे,
पर न जाने क्यों दोनों ही खामोश थे,
शायद वक़्त ने अल्फ़ाज़ छीन लिए थे हमारे,
बस युहीं एक दूसरे को बिना शब्दो के कह सुन रहे थे,
उस वक़्त सच कहता हूँ,
ऐसा लगा जैसे मेरे आंखों के सामने हमारा रिश्ता दम तोड़ रहा,
और हम दोनों ही कुछ न कर सकते थे ।
दो जिस्म, दो रूहों को एक वादे ने बांध रक्खा था ।
ताउम्र अलग रहने के लिए ।

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8 AUG 2020 AT 1:16

ये कम्भख्त चाँद निकलता क्यों नही,
कुछ बाते थी, जो उसे बतानी थी,
और समझानी थी,
सुनता ही नही मेरी,
इक तारा ही तो था,
टूट गया सो टूट गया,
और भी तो कई तारे है,
बहुत से सितारे है,
न जाने किस गम में यूँ आधा हुए जा रहा,
आज तो हद ही कर बैठा है ये,
निकलता ही नही,
कुछ पूछो तो बादलो में छुप जाता है,
खुद को जला कर, आखिर क्या ग्रहण करना चाहता है ?


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5 AUG 2020 AT 19:54

कुछ तो बात है,
तेरी माटी में ऐ अयोध्या,
की भगवान को भी तुझे पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है ।

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