तुमसे अब रिश्ता है कुछ ऐसा
ना नफ़रत है और ना ही इश्क़ है पहले जैसा ।
ना पाने की तुझे चाहत है ना ही खोने का है कोई ग़म
अब ना ख़ामोशी और ना ही है ये आँखे नम ।
साथ हो या ना हो अब कोई फ़र्क़ नहीं
वज़ह चाहे जो भी रही हो आगे अब कोई तर्क नहीं ।-
उलझी हुई सी है ये ज़िंदगी,
थके हुए से हम,
खोने पाने के खेल में
हो चुकी है ये आँखें नम।
अतीत के साये में भविष्य ढूँढती,
वर्तमान को मिल रही है ग़म।
थक हार इस संसार में,
अब शून्य हो चुके है हम।
अब कहाँ जाएँ, किस ओर चलें?
थम चुके है मेरे ये कदम।-
दुनिया के रंगों से मैं अनजान था,
अपने-पराये का न पहचान था,
सपनों की दुनिया में खोया था,
झूठ और फरेब के साए ने घेरा था।
हकीकत ने आज है झकझोरा,
धोखे की बिसात ने है इस दिल को तोड़ा।
ना कभी किसी से कोई भेद किया,
न्योछावर सर्वस्व सदैव किया।
बिना दिल के जज़्बातों को समझे,
हर रिश्ते को अपने हृदय से लगाया।
समझा न था मैं ये जग झूठा होगा,
अपनों के बीच ही छिपा कोई बैगाना होगा।
खैर, चोट इस कदर है खाई,
जिस्म से ज़्यादा ये रूह है काँप आई।
अब किससे करूँ गिला, किससे करूँ शिकवा,
जब किसी ने कोई कसर न छोड़ी।
अब जैसा हूँ, जो भी हूँ,
बस अब ठीक हूँ।-
यादें थी ऐसी, भूले तो थे पर भूले न थे, 😊
दिल के कोने में छुपी, वो कहीं खोई न थी💭
वक़्त के साथ बदल गई , वो पुरानी कहानी ⏳
पर दिल के किसी कोने में, वो यादें अब भी जवाँ ही थे. ❤️-
ख़्वाबों की उड़ान में, जब खो गया था आसमां,
अपनी ही ज़मीन से, क्यों अनजान हो गया मैं।
दूसरों की हंसी के लिए, अपना दर्द छुपाया,
खुद के टुकड़े करके, सब में बाँट आया।
अब जब देखता हूँ, टूटे हुए आईने में खुद को,
एक अधूरी तस्वीर, बिन रंगों के उभर आयी है।
फिर भी एक आस है, बाकी इस दिल में,
कि शायद एक दिन, ये तस्वीर पूरी हो जायेगी,
सपनों को फिर से नई उड़ान मिल जायेगी।
खुद को फिर से पाऊँगा, अपने ही रंगों में,
फिर न कोई आस अधूरी, न कोई ख्वाब अधूरा रह जायेगा ।-
समय निरंतर चलता जा रहा वक्त मेरा थम सा गया है
ये उगता सूरज शायद धीरे धीरे ढलने को आया है।
लड़ कर ज़माने से अब खुद से ही हारा है
ये दिल जो जिद्दी सा था अब तो वो भी बेसहारा है।
न दिखती कोई उम्मीद की किरण न दिखता कोई आस है
सब होते हुवे भी कुछ भी नहीं अब पास है।
हां कदम की कदम से कदम थी मिलाई
पर कोशिशों के बावजूद भी सबकुछ अधूरी ही है पाई ।
खैर सवेरे से तो निराश थे अब शाम से भी चोट खाई है
लोगों की छोड़ो क़िस्मत को भी अब शायद हमसे कुछ ज्यादा ही रुसवाई है।-
क़िस्मत से हारा मैं वक्त का मारा हूं,
अपनी लाचार सी जिंदगी का मैं एक भागता बंजारा हूं।
ना रास्ते साफ़ है ना मंजिल पास है,
अधूरी ख्वाहिशें साथ में मन निराश है ।-
नहीं बन पाया मैं एक सच्चा दोस्त
नहीं निभा पाया मैं दोस्ती
हां कोशिश ज़रूर दिल से की थी मैंने
हर गम हर आंसू छीनना चाहा था तुमसे
पर चाहत अधुरी सी रह गई मेरी
नहीं दे पाया खुशियां सारी
ना समझा पाया खुद को
और ना खुद को जता पाया
ना बातें सारी बता पाया
और ना जज़्बात अपने दिखा पाया
दिल को चोट पहुंचाया आंखों को भी रुलाया
एक अच्छा इंसान भी ना मैं बन पाया
ना दर्द बांट पाया और ना गम ले सका
यार ये कैसी दोस्ती मैं निभाया
सोंचा था कुछ वक्त साथ होंगे
जी भर के हर उन लम्हों को जिएंगे
अपनी अधूरेपन को तुझसे जोड़कर दोनों पूरे होंगे
पर किस्मत को कोसू या नसीब को दोष दूं
ख़ुद को बोलूं या ईश्वर से शिकायत करूं
हर चीज़े क्यों मैं ही अधूरी पाऊं
कितना खुद को हर वक्त सम्हालु
कितना खुद को मैं समझाऊं
थक चुका हूं हार गया हूं
खुद में ही अब बिखर गया हूं
अगर हो प्रभु आप इस जहां में तो मेरी आखिरी बात भी सुन लो
मांगता नहीं मैं कभी ज्यादा आपसे पर इस बार मांगता हूं
बहुत को चुका मैं बचपन से अब नहीं खोना कुछ मुझे
देनी हो जिंदगी तो अच्छे से दो
वरना ये जिंदगी ही छीन लो ।
ना फिर शिकायत रहेगी ना गिले शिकवे रहेंगे
हां कुछ दिन लोग रोएंगे
पर फिर सब भूल ही जायेंगे-
जब कभी तुम्हारा दिल टुटता है तो दिल ये मेरा रोता है,
अनजाने से भी हमसे कुछ भूल हो जाती है, तो आंखें बस आसुओं से घुल जाती है।
हां बातें कुछ अटपटी सी कभी कर जाता हूं,
पर यार तुम्हें दुखी देखना कभी नहीं चाहता हूं।
ना मैं वो कर पाता जो मैं समझता,
और ना ही मैं वो करता जो तुम समझते।
पर पता नहीं क्यों और कैसे
बस चेहरे पे तुम्हारे खुशियों की जगह गम ही दे जाता हूं।।
यार तुम्हें दुखी कर के मैं खुश कैसे रह सकता हूं,
तुम्हें बुरा बता के मैं भला कैसे बन सकता हूं।
तुमको ही माना है,जाना है और तुमको ही पहचाना है,
जग का क्या ही करना ये तो वैसे ही बैगाना है।
ना बदला ना बदलूंगा,
यार मैं जो तब था अब भी वही ही हूं ।
चाहता हर वक्त यही कभी तुम्हें कोई गम न मिले
पर कभी कभी इसकी वजह मैं ही बन जाता हूं।
हां जानता ये भी हूं समझते तुम मुझे
पर दिल को बस कभी कभी ये समझा ना पाता हूं।।
आंखें जागती दिल ये सोंचता,
जब मेरी वजह से तू है रोता।
ना जता पाता और ना बता पाता,
मेरे हिस्से की आंसू जब भी तुम्हारे आंखों से निकलता
दिल मेरा भी उस वक्त तड़पता ।
खैर हूं तो इंसान ही ,
इसलिए मांगता कुछ भी नहीं ।
क्योंकि मांगने पर भी कहां कभी मिल पाता,
करता कुछ हो कुछ जाता,
ना चाहते हुए गमों की ही वजह बन जाता।-
इस छोटी सी जिंदगी में ठोकरें इतनी और इस कदर है खायी ,
कि अब तो दर्द सहने की आदत है बन आयी ।
फ़र्क नहीं पड़ता अब चोट लगने से ,
ये जिस्म तो यूं ही भरा पड़ा है जख्मों से ।
ख़ैर हर बार तो यही होता, एक और बार ही सही
यही सोंच कर अब अपनी जज़्बात दिखाता नही।
आप खुश रहो मस्त रहो ,
मेरा क्या है ।
कितना भी बढ़िया सोंच लो कुछ भी कर लो,
हर बार तो यही होता थोड़ी न ये पहली दफा है।
खुशियां चार तो गम हज़ार है,
अब अंत समझो या आरंभ
पर इस जिंदगी का बस यही सार है।-