Suraj Pathak   (Suरज Kumar Pathak)
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Joined 9 November 2017


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Joined 9 November 2017
6 MAY 2023 AT 0:07

समय निरंतर चलता जा रहा वक्त मेरा थम सा गया है
ये उगता सूरज शायद धीरे धीरे ढलने को आया है।
लड़ कर ज़माने से अब खुद से ही हारा है
ये दिल जो जिद्दी सा था अब तो वो भी बेसहारा है।

न दिखती कोई उम्मीद की किरण न दिखता कोई आस है
सब होते हुवे भी कुछ भी नहीं अब पास है।

हां कदम की कदम से कदम थी मिलाई
पर कोशिशों के बावजूद भी सबकुछ अधूरी ही है पाई ।
खैर सवेरे से तो निराश थे अब शाम से भी चोट खाई है
लोगों की छोड़ो क़िस्मत को भी अब शायद हमसे कुछ ज्यादा ही रुसवाई है।

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12 SEP 2022 AT 8:02

क़िस्मत से हारा मैं वक्त का मारा हूं,
अपनी लाचार सी जिंदगी का मैं एक भागता बंजारा हूं।
ना रास्ते साफ़ है ना मंजिल पास है,
अधूरी ख्वाहिशें साथ में मन निराश है ।

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12 SEP 2022 AT 6:30

नहीं बन पाया मैं एक सच्चा दोस्त
नहीं निभा पाया मैं दोस्ती
हां कोशिश ज़रूर दिल से की थी मैंने
हर गम हर आंसू छीनना चाहा था तुमसे
पर चाहत अधुरी सी रह गई मेरी
नहीं दे पाया खुशियां सारी
ना समझा पाया खुद को
और ना खुद को जता पाया
ना बातें सारी बता पाया
और ना जज़्बात अपने दिखा पाया
दिल को चोट पहुंचाया आंखों को भी रुलाया
एक अच्छा इंसान भी ना मैं बन पाया
ना दर्द बांट पाया और ना गम ले सका
यार ये कैसी दोस्ती मैं निभाया
सोंचा था कुछ वक्त साथ होंगे
जी भर के हर उन लम्हों को जिएंगे
अपनी अधूरेपन को तुझसे जोड़कर दोनों पूरे होंगे
पर किस्मत को कोसू या नसीब को दोष दूं
ख़ुद को बोलूं या ईश्वर से शिकायत करूं
हर चीज़े क्यों मैं ही अधूरी पाऊं
कितना खुद को हर वक्त सम्हालु
कितना खुद को मैं समझाऊं
थक चुका हूं हार गया हूं
खुद में ही अब बिखर गया हूं
अगर हो प्रभु आप इस जहां में तो मेरी आखिरी बात भी सुन लो
मांगता नहीं मैं कभी ज्यादा आपसे पर इस बार मांगता हूं
बहुत को चुका मैं बचपन से अब नहीं खोना कुछ मुझे
देनी हो जिंदगी तो अच्छे से दो
वरना ये जिंदगी ही छीन लो ।
ना फिर शिकायत रहेगी ना गिले शिकवे रहेंगे
हां कुछ दिन लोग रोएंगे
पर फिर सब भूल ही जायेंगे

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8 SEP 2022 AT 6:25

जब कभी तुम्हारा दिल टुटता है तो दिल ये मेरा रोता है,
अनजाने से भी हमसे कुछ भूल हो जाती है, तो आंखें बस आसुओं से घुल जाती है।
हां बातें कुछ अटपटी सी कभी कर जाता हूं,
पर यार तुम्हें दुखी देखना कभी नहीं चाहता हूं।
ना मैं वो कर पाता जो मैं समझता,
और ना ही मैं वो करता जो तुम समझते।
पर पता नहीं क्यों और कैसे
बस चेहरे पे तुम्हारे खुशियों की जगह गम ही दे जाता हूं।।
यार तुम्हें दुखी कर के मैं खुश कैसे रह सकता हूं,
तुम्हें बुरा बता के मैं भला कैसे बन सकता हूं।
तुमको ही माना है,जाना है और तुमको ही पहचाना है,
जग का क्या ही करना ये तो वैसे ही बैगाना है।
ना बदला ना बदलूंगा,
यार मैं जो तब था अब भी वही ही हूं ।
चाहता हर वक्त यही कभी तुम्हें कोई गम न मिले
पर कभी कभी इसकी वजह मैं ही बन जाता हूं।
हां जानता ये भी हूं समझते तुम मुझे
पर दिल को बस कभी कभी ये समझा ना पाता हूं।।
आंखें जागती दिल ये सोंचता,
जब मेरी वजह से तू है रोता।
ना जता पाता और ना बता पाता,
मेरे हिस्से की आंसू जब भी तुम्हारे आंखों से निकलता
दिल मेरा भी उस वक्त तड़पता ।
खैर हूं तो इंसान ही ,
इसलिए मांगता कुछ भी नहीं ।
क्योंकि मांगने पर भी कहां कभी मिल पाता,
करता कुछ हो कुछ जाता,
ना चाहते हुए गमों की ही वजह बन जाता।

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29 JUL 2022 AT 5:00

इस छोटी सी जिंदगी में ठोकरें इतनी और इस कदर है खायी ,
कि अब तो दर्द सहने की आदत है बन आयी ।
फ़र्क नहीं पड़ता अब चोट लगने से ,
ये जिस्म तो यूं ही भरा पड़ा है जख्मों से ।
ख़ैर हर बार तो यही होता, एक और बार ही सही
यही सोंच कर अब अपनी जज़्बात दिखाता नही।
आप खुश रहो मस्त रहो ,
मेरा क्या है ।
कितना भी बढ़िया सोंच लो कुछ भी कर लो,
हर बार तो यही होता थोड़ी न ये पहली दफा है।
खुशियां चार तो गम हज़ार है,
अब अंत समझो या आरंभ
पर इस जिंदगी का बस यही सार है।

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28 JUL 2022 AT 23:39

समझा सब मैं नासमझ,
नासमझ बन कर कोई समझा नहीं ।
खैर लिखी नहीं उसने भी कहानी मेरी,
कहानी सारी लिखी पर मेरी नहीं ।।

मिल कर कुछ रहा अधूरा,
अधूरा रहा सब कुछ मिला नहीं ।
खैर लग रही ये जिंदगी लंबी,
लंबी है पर जिंदगी नहीं ।।

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1 JUL 2022 AT 2:10

वक्त ने चाहत छीन ली
चाहत ने अल्फाज़ छीन लिए
अल्फाज़ ने मोहब्बत छीन ली
और मोहब्बत ने हमसे हमें ही छीन लिया

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19 JUN 2022 AT 13:31

जिन्हें हम लफ्जों में बयां नहीं कर सकते
जिनकी तारीफ़ में दुनिया की सारी शब्दकोश के शब्द कम पड़ जाते
जन्म से जिनका हमें नाम है मिलता
जिनका हरदम हमें साथ है मिलता
हमारी खुशियों के लिए जो अपनी खुशियों को कुर्बान कर देते
हमारे लिए हर मौसम हर हालात से लड़ते
खुद गिरते खुद ही सम्हलते लेकिन हमें कभी गिरने न देते।।
जिनका न कोई दिन होता न कोई वार होता
और न ही कोई त्योहार होता
प्यार तो हमें बहुत करते पर कभी न जताते
अपने कंधो में बैठा कर हमें सारा जहां दिखाते।
धरती में ईश्वर का स्वरूप है पिता
सबसे अनमोल रत्न है पिता
इस श्रृष्टि के भाग्य विधाता है पिता।

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13 APR 2022 AT 16:13

कहना तो बहुत कुछ था तुम्हें
पर यार अब ख़ामोशी मुझे पसंद आने लगी

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16 MAR 2022 AT 23:36

अनजान शहर में गुमनाम बने फिर रहे हैं,
कमबख्त तलाश भी उसका कर रहे जो किसी और का बने फिर रहे हैं।

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