Tum bhi Barish ki tarah ho,
Gussa karti ho to,
Musladhaar ho jati ho.
Ishaq karti ho to,
Rimjhim ho jati ho.
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सब मकान लेने के लिए मर रहे है, ये जानते हुए भी कि वो ख़ुद किराये पर रह रहे हैं।
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ये दुनिया कमज़ोर न समझें, इसलिए तेरे आंखों में बूढ़ा होना चाहता हूं।
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सबके बस की नहीं होती इश्क़ में ठहरना,
गर होता तो इश्क़ में बेवफ़ाई की बातें न होती।-
हमने इश्क़ के बैंक में एक जॉइंट खाता खोला था।
हम दोनों हर रोज़ न दिखने वाली किश्तों में एक-दूसरे के लिए अपने पास इश्क़ जमा करते थे। फिर महीने की एक तारीख़ को केक काट कर महीने भर के इश्क़ को दोनों खाते जमा कर देते थे। ऐसा हम हर महीने करते। फिर साल भर बाद बैंक हमको कपड़े, चैन के रूप में गिफ़्ट देता। जिसे हम सब की नज़रों से बचा कर बैंक के सेक्युरिटी खाते में रख देते थे। कभी-कभी सेक्युरिटी खाते से निकालकर उसे पहन लेते थे, भाई आख़िर बैंक को भी पता चले न कि लेने-देन हो रहा है।
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उर्दू और हिंदी के शब्दों का मिलन बेहद ख़ूबसूरत है और मैं इनसे एक नाराज़ नज़्म नहीं लिखना चाहता।
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