Suraj Mishra   (Suraj Mishra)
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Joined 14 March 2018


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Joined 14 March 2018
9 JUN 2022 AT 19:06


ग़र आईने को पता है
तुम्हारे सितम सारे
तो जग जाहिर क्या करे।

मुखौटे तो उतारते होगे
अकेले में सारे
तो हम बेनक़ाब क्या करे।

बाजार में चर्चे है
बर्ताव के तुम्हारे
तो हम लिहाज क्या करे।

मिलता नहीं चेहरा
हुस्न से तुम्हारा
जो तुम्हें पता है
तो हम नुमाया क्या करे।

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14 SEP 2021 AT 23:23

अब मुश्किल है।

टहलते टहलते बहुत दूर निकल आया हूँ घर से
की वापस अब घर जाना मुश्किल है।

खुबसुरती तलाशने की सज़ा कुछ ऐसी मिली है
की सपने तक अब पहुंच पाना मुश्किल है।

तेज़ दौड़ते कदम निठल्ले कांटो से भरे है
जिन्हें अब निकाल पाना मुश्किल है।

खोज रहा हूँ उस पड़ोसी को जो रास्ता बता दे,
की रास्ता अब खोज पाना मुश्किल हैं।

पथ के आगे अनेक पथ उसके आगे भी अनेक
की पथ पर अब बढ़ पाना मुश्किल है।

बस सफर की सीख मिली है कुछ ऐसी जेहन को
की उसे अब भुल पाना मुश्किल हैं।

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14 SEP 2021 AT 23:16

वो तुम्हे धर्म पर सोचने पे मज़बूर करेंगे।
तुम बस एक इंसान बने रहना।

कुछ मौकापरस्ती में खुद को कमज़ोर बताएंगे।
तुम खुद कि समझ बचाते रहना।

वो भावनओं से सियासत खेल जाएंगे।
तुम बस खिलौना मत बनना।

कुछ नफरत का खेल दिखाएंगे।
तुम बस आंखे न बंद करना।

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12 APR 2021 AT 0:21

कलम भी थी और स्याही भी
बस पन्ने खत्म हो गये ।

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18 SEP 2020 AT 1:22

तुम कितनी बदकिस्मत हों
की तुम उसे नहीं पहचानती,
जो सिर्फ आँखे देख
तुम्हे पहचान लेता है।
तुम्हारी मुस्कुराहट पर
जान दिए फिरता है।
जो तुमसे मिलने को तरसता है।
पर इश्क़ का एहसास,
वो मिले बिना
सदियों तक जवां रखता है।

तुम ऐसी बदकिस्मत हो,
की तुम उसे नहीं जानती।

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1 OCT 2019 AT 0:21

नदानीयों से ज़िन्दगी कुछ यूं बेतरतीब हुई है,
की इसे संवार लेने दे।
की मौत आयी तो कह देंगे उससे, कर्ज़ बहुत है,
इसे उतार लेने दे।

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9 JUL 2019 AT 13:17

सवाल बस इतना सा है
की जो बात जैसी है उसे वैसी हि क्यों ना कही जाए?
क्यों उसे सोच के उदेडबून में लपेटी जाए?
क्यों भावनाओ में संभावनाएं तलाशी जाए?
जो बात जैसी है,
उसे वैसी हि क्यों ना छोड़ डी जाए?
सवाल बस इतना सा है
की जो बात जैसी है उसे वैसी हि क्यों ना कही जाए?

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30 MAY 2019 AT 22:16

मौसम विभाग वालो ने बतायी
गर्मी के और बढ़ने के आसार है।
हम तो उम्मीद लिए बैठे है,
अब सिर्फ बारिश का इंतज़ार है।

ताप्ती, जलती गर्मी और
बेरोजगारी का खुमार है।
क्या कहे 'सूरज' तुमसे
अब तो बस बारिश का इंतज़ार है।

घर मे बैठे, एक हाथ पँखा
एक हाथ किताब लिए,
Competition वाला अगला एतवार है।
बिजली आ- जा चुकी,
बस बारिश का इंतज़ार है।

धरती तप रही सूरज की गर्मी से,
सूरज तप रहा मेहनत की अग्नि में,
टूट टूट कर जुटता अब विश्वास है।
सब झेल लिया।
अब बारिश का इंतज़ार है।

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30 MAY 2019 AT 1:58

कह लेने दो दिल के सारे अरमान, बताने दो मुझे मेरे दिल की सारी बाते।

फिर तुम तय करना कि तुम इनको सुनो क्यों?

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23 MAY 2019 AT 23:48

मैं आजाद हूं।
आकाश के अंत तक
समुद्र की गहराई से
मेरी कोई सीमा नहीं।

उत्तर, दक्षिण,
पूरब और पश्चिम
से परे मैं उड़ता।
मेरी कोई दिशा नहीं।

पत्थर सा सख्त,
पानी सा बह जाऊं,
जो मुट्ठी में बंद करो मुझे,
रेत सा बाहर आ जाऊं।

मैं रौद्र हूं,
मैं शांत भी,
मैं ह्रदय के अन्धकार कोने में पल रहा निकांत हूं,
मैं हूं अग्न,
मैं नीर भी।
मैं मादकता हूं इस पल का
मैं कल का परिदृश्य भी।
मैं साथ हूं अभी, अभी दूर भी।
मैं हूं प्रलय, विध्वंश हूं।
मैं हूं सृजन, मैं प्राकृत भी।
मैं निडर हूं, अतांक हूं।
मैं आदि और अंत हूं।

मैं आजाद हूं।
मैं आजाद हूं।

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