Suraj Kumar Praudh Kalam   (Suraj Kumar "प्रौढ़ कलम")
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Professionally, I am not a writer. I just love to write.
Joined 11 December 2019


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15 OCT 2022 AT 15:57

मुझ सैटेलाइट को चाहिए मेरा रॉकेट
मुझे चाहिए मुझ पर गर्व करने वाला वो शख्स
और वो दिन मैं जल्द लाऊँगा
ये खुद से कह रहा हूँ पर सामने सब साक्षी होंगे

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15 OCT 2022 AT 14:03

कोई फ़र्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।

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15 OCT 2022 AT 11:58

मुझे जरूरत है तुम्हारे साथ की सदा
और बदल दूँगा खुद को ये भी है पता
🙏

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15 OCT 2022 AT 0:23

पूजा है तुमको.... तुम्हें ही माँगा है
अब बदल कर खुद को... तुम्हें दिखाना है👍

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14 OCT 2022 AT 23:40

जिंदगी जीना सिखाया तुमने
सपने देखना सिखाया तुमने
मुझमे हौंसला बोया तुमने
सच्चा इंसान बनाया तुमने
सच्चा प्यार क्या होता है?
ये एहसास कराया तुमने
धीरे-धीरे ही सही... पर
मुझे जिम्मेदार बनाया तुमने
कुछ टूटे-बिखरे भी हम दोनों
फिर नवजीवन दिलाया तुमने
कमज़ोर तुम नहीं... मैं हो गया था...
ये सच आज महसूस कराया तुमने
लेकिन तुम्हारे सपनों की अब जिम्मेदारी मेरी है
मेरा किनारा बनकर पार कराया तुमने.... 🙏

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11 AUG 2022 AT 2:18

तुम्हारे हर तकलीफ से मैं वाकिफ़ हूँ मेरी जान
मुझे माफ कर दो देर से समझा, था मैं नादान
तुम्हारे आँसू को अब एक और बार गिरने ना दूँगा
तुम्हारे आंसुओं की कीमत है क्या तुम्हें नहीं पहचान
हाँ हूँ मानता समय लगेगा तुम्हें बढ़ने में आगे अभी
पर साथ दूँगा तुम्हारा और करेंगे मिलके सब आसान
मैं भी कर रहा हूँ मेहनत सब कुछ ठीक करने की
मेरी सब कोशिशों से तुम भी नहीं हो अनजान
तुम्हारी खुद के अस्तित्व को पाने की जद्दोजहद का
सच्चे दिल और अंतर्मन से करता हूँ मैं सम्मान
🙏🙌😇💐🌹❤️🌷💕🙏

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11 AUG 2022 AT 2:11

नहीं जाऊँगा दूर तुमसे ये वादा है मेरा
तुम्हारा ही होकर रहूँगा ये इरादा है मेरा
आज तुम जूझ रही हो जिस कश्मकश से
इस हाल में भी प्यार तुमसे ज्यादा है मेरा

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8 MAR 2022 AT 0:58

खोया हुआ-सा मन मेरा जाने किस सवाल में है?
कहाँ खयाल है अब अपना, ये तो तेरे ख्याल में है

लगती है अब मुझको फींकी, बागों की ये सारी कलियाँ
जब से हसरत इन आँखों को तेरे हुस्न-ए-ज़माल में है

तुझ-सा हसीं कहाँ है कोई? सारी अदाएं है तुमने पायी
वो आग दोज़ख में कहाँ है? जो तेरे हुस्न-ए-मशाल में है

तू ही बस हर घड़ी, हर पल, हर साँस, हर धड़कन
तुझे सोचें के सिवा कोई सोच अब कहाँ मेरे मज़ाल में है

माना उसकी दोनों आँखें इक - इक दरिया होगी "सूरज"
तूने भी तो कितने सागर, छुपाये रक्खे रुमाल में है

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6 MAR 2022 AT 9:17

जिस राह पर मुझे तुमने कभी यूँही बस पुकारा था
हूँ आज उसी राह पर मैं, हाँ। यही वो चौबारा था

याद करता हूँ तो अब पहले-सा नहीं लगता कुछ भी
सबकुछ तो वही है पर, पहले कुछ और नज़ारा था

वो सड़क के पास का पेड़ है अभी भी यहीं मौजूद
दिल था बनाया उसपे, जिसमें छपा नाम हमारा था

कबूतरों की टोली अब भी यहीं करती है मटरगश्ती
कभी उनके हर दाने पर जो लिक्खा नाम तुम्हारा था

तुम्हारे घर को जाती बस में चढ़ तो जाऊँ मैं मगर
तुम बिन तन्हा सफ़र करना, कहाँ मुझे गवारा था

शाम ढले मेरे जाने की जिद और तुम होती उदास
क्यों ना हो नाराज़ आखिर, मैं ही तो तेरा सहारा था

जो आँखें फ़ेर तुझसे कभी घर को बढ़ भी जाते कदम
फ़िर बेबस करने को इनको, काफी एक इशारा था

वक़्त- ए - रुख़सत की घड़ी आ भी गयी तो भी "सूरज"
वस्ल का इंतजार हमको, रहता फिर दुबारा था

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5 MAR 2022 AT 0:04

अब तुम भी मुझे देख मुस्कुराने लगी
क्या ग़म है जो मुझसे छुपाने लगी?

तेरे आँखों की नमी औ होंठों की मुस्कान
रहकर ख़ामोश बहुत कुछ बताने लगी

अजनबी-सा हूँ अब पर, था कभी पूरा अपना
ज़ुबाँ से क्यों मगर अपना हाल बताने लगी?

तुम्हारे सारे ग़म तो कभी मेरे हिस्से थे
ये कौन-सी नयी चिंता है जो सताने लगी?

क्या तुम भी किसी और की नहीं हुयी अब तलक?
ये क्यों तुम मेरे राह पर जाने लगी?

जो छोड़ना ही था तुझको इक दिन "सूरज"
तो किस हक से वो तेरे रूह में समाने लगी?

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