चलो मैं याद
और तुम मेरा हर पल बन जाओ-
जिंदगी जीना सिखाया तुमने
सपने देखना सिखाया तुमने
मुझमे हौंसला बोया तुमने
सच्चा इंसान बनाया तुमने
सच्चा प्यार क्या होता है?
ये एहसास कराया तुमने
धीरे-धीरे ही सही... पर
मुझे जिम्मेदार बनाया तुमने
कुछ टूटे-बिखरे भी हम दोनों
फिर नवजीवन दिलाया तुमने
कमज़ोर तुम नहीं... मैं हो गया था...
ये सच आज महसूस कराया तुमने
लेकिन तुम्हारे सपनों की अब जिम्मेदारी मेरी है
मेरा किनारा बनकर पार कराया तुमने.... 🙏-
तुम्हारे हर तकलीफ से मैं वाकिफ़ हूँ मेरी जान
मुझे माफ कर दो देर से समझा, था मैं नादान
तुम्हारे आँसू को अब एक और बार गिरने ना दूँगा
तुम्हारे आंसुओं की कीमत है क्या तुम्हें नहीं पहचान
हाँ हूँ मानता समय लगेगा तुम्हें बढ़ने में आगे अभी
पर साथ दूँगा तुम्हारा और करेंगे मिलके सब आसान
मैं भी कर रहा हूँ मेहनत सब कुछ ठीक करने की
मेरी सब कोशिशों से तुम भी नहीं हो अनजान
तुम्हारी खुद के अस्तित्व को पाने की जद्दोजहद का
सच्चे दिल और अंतर्मन से करता हूँ मैं सम्मान
🙏🙌😇💐🌹❤️🌷💕🙏-
नहीं जाऊँगा दूर तुमसे ये वादा है मेरा
तुम्हारा ही होकर रहूँगा ये इरादा है मेरा
आज तुम जूझ रही हो जिस कश्मकश से
इस हाल में भी प्यार तुमसे ज्यादा है मेरा
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खोया हुआ-सा मन मेरा जाने किस सवाल में है?
कहाँ खयाल है अब अपना, ये तो तेरे ख्याल में है
लगती है अब मुझको फींकी, बागों की ये सारी कलियाँ
जब से हसरत इन आँखों को तेरे हुस्न-ए-ज़माल में है
तुझ-सा हसीं कहाँ है कोई? सारी अदाएं है तुमने पायी
वो आग दोज़ख में कहाँ है? जो तेरे हुस्न-ए-मशाल में है
तू ही बस हर घड़ी, हर पल, हर साँस, हर धड़कन
तुझे सोचें के सिवा कोई सोच अब कहाँ मेरे मज़ाल में है
माना उसकी दोनों आँखें इक - इक दरिया होगी "सूरज"
तूने भी तो कितने सागर, छुपाये रक्खे रुमाल में है
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जिस राह पर मुझे तुमने कभी यूँही बस पुकारा था
हूँ आज उसी राह पर मैं, हाँ। यही वो चौबारा था
याद करता हूँ तो अब पहले-सा नहीं लगता कुछ भी
सबकुछ तो वही है पर, पहले कुछ और नज़ारा था
वो सड़क के पास का पेड़ है अभी भी यहीं मौजूद
दिल था बनाया उसपे, जिसमें छपा नाम हमारा था
कबूतरों की टोली अब भी यहीं करती है मटरगश्ती
कभी उनके हर दाने पर जो लिक्खा नाम तुम्हारा था
तुम्हारे घर को जाती बस में चढ़ तो जाऊँ मैं मगर
तुम बिन तन्हा सफ़र करना, कहाँ मुझे गवारा था
शाम ढले मेरे जाने की जिद और तुम होती उदास
क्यों ना हो नाराज़ आखिर, मैं ही तो तेरा सहारा था
जो आँखें फ़ेर तुझसे कभी घर को बढ़ भी जाते कदम
फ़िर बेबस करने को इनको, काफी एक इशारा था
वक़्त- ए - रुख़सत की घड़ी आ भी गयी तो भी "सूरज"
वस्ल का इंतजार हमको, रहता फिर दुबारा था
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अब तुम भी मुझे देख मुस्कुराने लगी
क्या ग़म है जो मुझसे छुपाने लगी?
तेरे आँखों की नमी औ होंठों की मुस्कान
रहकर ख़ामोश बहुत कुछ बताने लगी
अजनबी-सा हूँ अब पर, था कभी पूरा अपना
ज़ुबाँ से क्यों मगर अपना हाल बताने लगी?
तुम्हारे सारे ग़म तो कभी मेरे हिस्से थे
ये कौन-सी नयी चिंता है जो सताने लगी?
क्या तुम भी किसी और की नहीं हुयी अब तलक?
ये क्यों तुम मेरे राह पर जाने लगी?
जो छोड़ना ही था तुझको इक दिन "सूरज"
तो किस हक से वो तेरे रूह में समाने लगी?
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तुम हो श्वेत चंद्रमा-सी , मैं काला स्याह दाग हूँ
तुम अमृतमंथन का हो फल, मैं विषयुक्त नाग हूँ
तुम भोर, संध्या, रजनी, पहर, हो अजर-अमर
तुम शीतलता हो जो ग़र तो मैं विपरित आग हूँ
तुम खुशबू, जादू, अद्भुत काया, हो अतृप्त माया
तुम बिन काँटे की गुलाब, मैं उजड़ा - सा बाग हूँ
तुम धुन, लय, स्वर, गीत , हो प्रीत-संगीत
तुम तानसेन की मधुर तान, मैं बेसुरा राग हूँ
तुम, अटल, अनंत, समस्त, पूर्ण, हो सम्पूर्ण
तुम स्वयं में ही पूरी हो और मैं तुम्हारा भाग हूँ
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बड़ी ही हसीं-सी, थी महफ़िल जमी
था तन्हा वहाँ मैं, थी मेरी कमी
मैं खुद को वहाँ पे तलाशता रहा
लोगों की नज़र थी, मुझी पे थमी
ऐसे में मुझे तुम जो याद आ गए
पाया मैंने, फिर थी आँखों में नमी
याद बनकर सही मुझसे तुम आ मिले
तो फिर मिटने लगी थी मेरी कमी
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सामने नहीं है तू मगर मौजूद मेरे अन्दर है
तेरा दिल दरिया है तो मेरा दिल समंदर है
हूँ घूमता गली-गली अब मैं तेरा नाम लिए
जो था कल आशिक तेरा आज एक कलंदर है
चला था जीतने मैं सारे जहां को एक दिन
तुझको खोकर किस काम का ये सिकंदर है
तूने जो कभी इश्क़ में पूजा था उसे "सूरज"
उसके जाने से अब वीरां तेरा दिल-ए-मंदर है
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