ना चाहते हुऐ भी तेरी याद क्यों बार बार आती है तू अब मेरी नही फिर क्यों ये हर बार होता है कि तेरी वो झूठी मोहब्बत क्यों मुझे हर बार रुलाती है अब तो तू किसी और की हो गई है फिर क्यों तू मेरे ख्वाबों में आती है
जिम्मेदारी जब सर पर आयेगी तब संभल जाओगे तुम वो घूमना-फिरना, दोस्तो के साथ पार्टियां सब भूल जाओगे तुम दिल तो बहोत करेगा पर खुद के लिऐ खुश रहना भूल जाओगे तुम खुद को खो कर सबको खुश करना सिख जाओगे जब मिलेगी हर जगह से निराशा गम के साथ जीना सिख जाओगे तुम फिर जब घर में देखोगे बूढ़े मां-बाप को तब सिर झुकाना सिख जाओगे तुम रात के अंधेरे से लड़ते-लड़ते सोना सिख जाओगे तुम कि घर की जिम्मेदारियां जब उठाओगे खुद को भूल जाओगे तुम