मैं और तुमसे शिक़ायत, नहीं,
तुम्हारा लहज़ा बदल जाएगा।-
सैलानियों के लिए पहाड़ बहुत काम्य हैं, पहाड़ पर रहने वालों का जीवन पहाड़-सा मुश्किल है।
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अँधेरा ख़ूबसूरत है बहुत उनके लिए,
जो उजाले में खुलकर रो नहीं सकते।-
कौन अपना, कौन पराया है,
ये बड़ी देर से समझ आया है।
अच्छे वक़्त में साथ रहे थे वो,
बुरे वक़्त में हाथ छुड़ाया है।
साज़िश रची थी पीठ पीछे ही,
बाद में ये ख़ुद उसने बताया है।
साथ भी न दिया किसी ने भी,
कहने भर को दुःख जताया है।
साथ भी देना चाहिए था 'देव'
कहा ख़ूब, जिन्होंने सताया है।-
सभी ने फ़सल देखी फिर सीधे बंजर खेत देखे।
न किसी ने सूखा देखा, न बीच के हालात देखे।-
ग़रीबी की बात तो कर लेते हैं पर ग़रीब से बात कैसे करें,
दिन में नुमाइश करेंगे शमा की इस अँधेरे में बात कैसे करें।-
बहुत ही शोरगुल भरा सन्नाटा है अंदर,
तुमने क्या कहा, कुछ सुनाई नहीं दिया।-
जन्म और मृत्यु को छोड़कर जीवन में अधिकांश घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है। बस नेपथ्य, रंगमंच, पात्र, संकलनत्रय, संवाद आदि में परिवर्तन होता रहता है।
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