Suraj Goswami   (Suraj Goswami)
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दस्तक देने वाले नही जानते
इज़ाज़त देने वालो का दुःख
Joined 9 July 2018


दस्तक देने वाले नही जानते
इज़ाज़त देने वालो का दुःख
Joined 9 July 2018
1 APR AT 22:37

चारागर ही कर देगा बीमार, किसको कहे
खंजर छुपा के आया है यार, किसको कहे

बुला आता था भाई को बचपन के झगड़े में
उसने ही खेंच ली है दीवार, किसको कहे

दो चार दुख सुनते ही रोने लगते है ये लोग
सुन नहीं पाता कोई लगातार, किसको कहे

महल से लौटे है दुत्कारे हुए सो खामोश है
हमने सजाये थे इनके दरबार, किसको कहे

कोई इस पार है नही किसको ये कह सके
दिल नही लगता है इस पार, किसको कहे

यूं दुनिया भर की बाते करता रहता सबसे
पर जो कहना है एक बार, किसको कहे

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2 OCT 2023 AT 8:50

हैप्पी बड्डे गाँधी ब्रो

कोई कहता ऐसे हो कोई कहता वैसे हो
ये सब छोड़ो और बताओ स्वर्गलोक में कैसे हो
"सब जन एक बराबर" सुनकर भारत का दिल ऊब गया है
सत्य,अहिंसा वाला बिस्किट गरम चाय में डूब गया है

जहाँ-जहाँ तुम रहते,उजड़े वे सब अड्डे गाँधी ब्रो।

दो का दूना पाँच रहे हैं अनपढ़ कॉपी जाँच रहे है
जिनने तुम को पढ़ा नहीं है तुमको गाली बाँच रहे हैं
ख़ुद कर के ख़ुद झेल रहे हैं इक-दूजे को पेल रहे हैं
डूड तुम्हारे तीनों बंदरछुपम-छुपाई खेल रहे हैं

दिन भर ज्ञान बाँटते रहते महा कुबड्डे, गाँधी ब्रो।
हैप्पी बड्डे गाँधी ब्रो।

- आशु मिश्रा

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16 SEP 2023 AT 21:34


ये दिन तो कट जाएंगे ज़िंदगी से
पर कुछ नही मिलेगा खुदकुशी से

शायद पौधे को जड़ लग गइ है
वो भी मुस्कुराई है खिड़की से

उसका ख़त आया भी था तो ऐसा
अंधेरा छा गया है उस रोशनी से

तुम आ गई हो तो खाली हो गया हूं
वरना भरा रहता था तुम्हारी कमी से

चाहे कोशिश कर लो उसके दिल पे
मगर ताला खुलता है सही चाबी से

- Hemant Rajpurohit

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30 SEP 2022 AT 21:53

कैसे कैसे दुःख आकर गले पड़े
क्या शेर कहने थे क्या कहने पड़े

जां बचाने को जो तीर खरीदे थे
जिन्दा रहने को वो भी बेचने पड़े

चराग़री पे भरोसा दुनिया का बना रहे
सो जो मंजर हुए नही वो बनाने पड़े

तुम्हारे साथ इक दिन होने खातिर
कैसे कैसे दिन थे मुझे देखने पड़े

ये भी सितम कम तो नही था कि
उसके दिए हुए सितम भुलाने पड़े

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9 JUL 2022 AT 9:56

और कोई क्या बेबस हो और कितना हो
एक दिन ख़ुद को कहा जा तेरा अच्छा हो

पानी मे उठे बुलबुलो से थे वादे तुम्हारे
जानता था तुम पल भर का तमाशा हो

वो सालो से इस किनारे उदास बैठता है और
इतना उदास जैसे उसका कोई अभी डूबा हो

ज़िन्दगी अजीब उलझन में है तुमसे मिलकर
ये उलझन कि तुम भंवर हो या किनारा हो

पहला इश्क़ मैं दोबारा कर तो सकता हूँ
मगर बस शर्त इतनी है शख़्स दूसरा हो

इन पत्थर हो चुकी आंखों से तुम सूरज
चाहते हो झील सी आंखों का राब्ता हो

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20 MAY 2022 AT 12:11

.....

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14 MAY 2022 AT 2:28

जमीन पर आ गिरेंगे ऊंचा उड़ने वाले लोग
अक्सर डूब जाते है अच्छा तैरने वाले लोग

इश्क़ करेंगे और दुनिया के सामने करेंगे
लब नही हम तो है माथा चूमने वाले लोग

जब तक खुशबू होती है फूल साथ रखते हैं
तु बता कहाँ गए तेरे साथ चलने वाले लोग

जो भी बाते करते है, वो बस बाते करते है
कुछ भी तो नही कहते है, मरने वाले लोग

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18 MAR 2022 AT 0:22

गम लेकर गए थे हम दोस्ती की तरफ
यूं ही नहीं लौट आए शायरी की तरफ

उजाला करने का वादा जो कर रहे थे
वो आग लेकर आए थे बस्ती की तरफ़

तुम्हारे आने से पहले मुझको जल्दी थी
तुम्हारे जाने तक न देखा घड़ी की तरफ

शीशा चढ़ते ही उसके ख्वाब उतरने लगे
बच्चा तो बस देख रहा था गाड़ी की तरफ

दोनो सूखे देख रहे बस एक दूसरे की तरफ
नदी प्यासे की तरफ प्यासा नदी की तरफ

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14 FEB 2022 AT 12:22

कैसे किसने उसके घर तक पहुंचाई होगी
खबर जब उसके शहादत की आयी होगी

मां जो स्वेटर बुन रही रही थी उस रोज
वो ऊन की उलझने किसने सुलझाई होगी

वो रात जो सर्द थी सिहरन पैदा कर गयीं
ओंस ने सुबह घास कैसे चमकाई होगी

गांव के तमाम चूल्हों में लकड़ी नही जली
क्या कृष्ण ने उस शाम बांसुरी बजायी होगी

क्या फर्क पड़ा हमारे सियासी रहनुमाओ को
उस शाम भी उन्होंने रोटी चार ही खायी होगी

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9 JAN 2022 AT 21:30

मत पूछ कि शहर में ये तनाव कैसा है
तू गांव से आया है बता गाँव कैसा है

रात निकलती नही थी फूटने के डर से
उस तालाब में पानी का भराव कैसा है

जाती थी सेवइयां लौट आती थी मिठाई
पहले था त्यौहारो पर वो लगाव कैसा है

वो जो राहगीरों को रास्ता दिखाता था
उस पागल पर मरने का दबाव कैसा है

तजुर्बे सेंकते थे जहाँ पर हम बैठकर
वो बरगद कैसा है वो अलाव कैसा है

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