नया साल में चलो नया ख़ुलासा कुछ करते हैं।
नया राह बनाकर थोड़ा अभिलाषा कुछ करते हैं।
ये दिल टूटा है हाल में,फिर कुछ नया मोड़ लाते है!
आलम में अपनी अलग परिभाषा करते हैं।
नशा नहीं बस नजरंदाज ही काफी उसे भुलाने में,
मिले सारे दर्द पर हंसकर तमाशा कुछ करते हैं।
खुलुस-ए-दिल में नीयत तो एकदम साफ साफ है,
फिर अपनों से भी अब आशा कुछ नही करते हैं।
नव सदस्य कुछ आएंगे मिलने जिन्दगी में,
अपनी अधिग्रहण मिट्टी पर तासा कुछ करते हैं।
अपनी अल्फाज बनाकर तुम्हारी व्याख्या करते है,
सिर्फ हम दोनों समझें आओ कुछ करते है।
है कुछ राज हम दोनों खुद में दफन करते है,
आओ अपने मन को आज मधुशाला करते हैं।
ख्यालों से भरे जज़्बात बैठकर लिखेंगे -गाएंगे,
अपने बासा को भी हम पाठशाला कुछ करते हैं।
पढ़ेगा जो हमारी कहानी उसकी आंखें भिगेंगी,
कभी रोशनी बुझाकर दर काला कुछ करते है।
भविष्य उज्जवल बनेगा या हम बनाएंगे,
आओ "सूरज" के साथ तुम भी यारा,
मुस्कुराकर सबका घर उजाला करते हैं।
🖊️ सूरज कुमार सिंह 🖊️
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