दरारों का क्या,वो तो भर जाएंगी,
ये बिखरी जवानी किधर जाएगी,
जो मां जानेगी बेटा पीने लगा,
वो घुट-घुट के जीते जी मर जाएगी।
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जलती ज़िंदगानियां,सुलगते से हम..
नज़र मिली उनसे, ये क्या हो गया,
मेरा आंसू पलकों से बेवफ़ा हो गया।
अब अकेला ही रहना मुझे उम्र भर,
ख़्वाब इक हमसफ़र का हवा हो गया।-
इक ग़म होता बहुत जरुरी जीने के लिए,
सांसों का क्या, वो तो आती-जाती रहती हैं।-
ज़रा-ज़रा सी बात पर ख़फ़ा हो जाने वाले,
चाहतें हैं अपने नज़दीक कुछ मनाने वाले,
हर शहर में हज़ार दोस्त हैं मेरे,
पर पसंद हैं मुझे चाय पिलाने वाले,
मैं चेहरों की ख़ामोशियां भी सुन लेता हूं अक्सर,
मेरे पहलू में आते हैं आपबीती सुनाने वाले।
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ना किसी से कहना, ना रोना ,ना दुहाई देना,
इस पत्थर की दुनिया की आदत है ना सुनाई देना।-
बरसों का तपा छांव में ठहर गया होगा,
जहां देखा होगा उसको, वहीं बिखर गया होगा,
आज भी याद है उसे उसकी उंगलियों की छुअन,
बादल शाहिद हैं,
बूंद पड़ी होगी,
वो सिहर गया होगा।-
शहर से चल पड़ा अपने,
झलक उसकी इक पाने को,
कोई जो राह में उस सा दिखे,
ठहर जाऊंगा।-
कोई दस्तक भी ना दी
और भीतर आ गये,
शऊर कुछ तो होता होगा दिल में उतर जाने का?-