दिल है भारी आँखे हैं नम
मोहब्बत क्यों देती है इतना गम?
मैं हालातों से कैसे जीतू,
जब दिमाग पे तू भारी है
मेरे उमड़ते जज़बातों पे
तू क्यूँ इतना सवाली है?
मैं ना चाहूँ की तुझे सोंचू
तू मेरी हर सोच पर क्यूँ भारी है?
तू चला जा किसी का हाँथ थाम कर
मैं कह दूँगी तुझे बेवफा
तकिया में मुँह छुपा कर।
बस तू आज़ाद कर दे अब
यादें तेरी मुझे नही सहनी अब
कैसे बढ़ा दूँ अब कहीं और कदम
जब एक मुलाकात में तू इतना भारी है।
बहते मेरे अश्कों का सिर्फ तू ही कातिल है
मेरी छोटी छोटी खुशियों में तू ही तो शामिल है
मैं शब्दों का जाल कैसे बनाऊँ?
तू बता ना, मैं अपनी मोहब्बत तुझे कैसे समझाऊँ?
तू समाया है मुझमें जैसे चंदन की महक सा
तुझे पाया है मैंने जैसे शामों में सहर सा
ये कैसा रिश्ता है तुझसे मेरा
तू न होकर भी, है तो सिर्फ मेरा
आंखे हैं फिर आज नम
दिल आज फिर भारी है
जुगनू भरी इन रातों में
तू आज फिर सवाली है।
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