रुखसत की कसमें भी मुझसे,दीदारे रवायत भी मुझसे
जफ़ा की तोहमत भी मुझसे,वफादारी की हिमायत भी मुझसे
नफरतों का सिलसिला भी मुझसे,ताल्लुक की इनायत भी मुझसे।-
सुनो रंग लगाना मेरी ओर से
थोड़ा गुलाल यश का तिलक भाल पर,
थोड़ी मुस्कुराहट, खिलखिलाहट
और खुशियों का लाल गाल पर,
अपने आत्ममविश्वास पर पीला
और जीत लिखना ज़िन्दगी के हर सवाल पर
होली खेलना पहले स्व के साथ
प्रेम आत्मविश्वास स्वाभिमान के रंगों से,
फिर जुटना दुनिया के बवाल पर
होली की अनन्त शुभकामनाएँ
-
सजा लिया था जो
अनजाने में रिश्तों का ताना बाना,
धागे भावनाओं के उलझाने लगे थे,
उम्मीदों की चिता बनाकर
कर दिया दाह उन्हें,
गंगा भी अकुला जाती सो
कर दिया अश्रुयों में
संस्मरणों का अस्थि प्रवाह हमने।-
नूतन वर्ष में कुछ नूतन हो,
मन की सारी खिड़की खोल,
द्वेष,घृणा,और मन के मैल,
मुक्त करना सारे दुर्विचार,
बाँटना प्रेम हृदय से सच्चा,
करना वही जो लगे आत्मा को अच्छा,
चेहरे पर से चेहरे हटाना,
यकीन मानो सच से हर रिश्ता निभाना,
वक़्त लगेगा पर जीवन मे सदैव
सच का सूर्य उदय होता है,
हँसी बाँटता है,जो
वही सुकून में होता है।
नव वर्ष मंगलमय हो
-
अपनी मेहनत का दिया बनाएं,
नफरत के तेल में,ईर्ष्या की बाती जलाएं,
खुशियों के प्रकाश फैलाएं
उन्नति,समृद्धि,संपन्नता के लिए दीप जलाएं
घृणा, द्वेष,वैमनस्य ,का तमस मिटाएं
इस दीपावली अंतरात्मा से
बुद्ध के जैसे प्रज्जवलित हो जाएं
प्रकाशमय,सम्पन्न,सुरक्षित दीवाली
शुभकामनाएँ,
हमारे पूरे परिवार की ओर से अनन्त शुभकामनाएँ।-
चुभता है मन मे,
विवाह तो बस एक सामाजिक धर्म है,
फिर इसमें लड़कियों की आत्मा
को इतना ठेस क्यों पहुँचाया जाता है ।-
कर रही हूं प्रयास निरंतर
कर सकूं खुद में कुछ अंतर
शून्य से शतक तक जाना है
मंजिल दुनिया की नही
आत्मसन्तुष्टि को पाना है,
स्वयं को मूल्यांकित कर के
जो दे पाऊँ मैं शत प्रतिशत
तो जीत पाऊँ मैं समंदर ।।-
मन की कहना,
मन की सुनना,
हिंदी में सब अनुभव गूँथना,
भावनाओं का सार तुमसे,
सब कुछ कह लेने का आधार तुमसे,
बन जाओ जो राष्ट्रभाषा,
तो हो सार्थक प्यार तुमसे ।
विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं ।-
नव वर्ष में नव हर्ष हो,
नव उल्लास में मन रमा रहे,
यश कीर्ति नव निर्मित हो,
प्रगति पथ पर पग जमा रहे,
प्रेम के संचरण से,
त्याग के संवहन से,
जुड़े रिश्तों में मन भेद कमा रहे,
मैं,तुम,और हम जुड़ते जाएं
हम सबके प्रेम से जग यह बना रहे ।।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं,
प्रीतेश- गौरांगी- सुप्रिया पाठक की ओर से।-
धुंध की चादर धीरे से सरका कर,
ओस की मोतियों से टकरा कर,
कुछ तेज़ कुछ धीमे कदम से,
कुछ इठलाती,बलखाती सी,
देखो रवि रश्मि आती है ..,
तम के जमते कदमो को,
यूँ भोर हटाती है..,
कुछ इठलाती बलखाती सी,
देखो रवि रश्मि आती है ।।
-