Supriya Mishra   (Baarish)
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Joined 5 July 2018


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Joined 5 July 2018
29 APR AT 0:08

अँधेरा अच्छा लगता है..

नींदों में ख़्वाब का,
बसेरा अच्छा लगता है..

उसने छिना मुझसे मुझको,मुझे वो,
लुटेरा अच्छा लगता है..

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28 APR AT 23:41

मैत्री एक ऐसा भाव है,
जिसका एहसास मर नहीं सकता,
इसकी सारी स्मृतियाँ,
एक समुद्री सतह पर अंकित होती,
जो हर ज्वार के साथ किनारे पर आ जाती,
जैसे समुद्र अपने द्वारा प्राप्त हुए,
सभी वस्तुएँ किनारों को लौटा देता,
वैसे ही मैत्री भी समय के,
गर्भ में सिंचित स्मृतियों को,
एक ही संचार में,
स्नेह के किनारे लाकर खड़ा कर देती,
वापस उसी बिंदु पर जहाँ मित्रता,
का स्पर्श हुआ था,
कठिन हो जाता है परिस्तिथियों,
के साथ सामंजस्य बैठाना,
जिसपर सारे अधिकार अपने थे,
वो सब बंट जाते हैं।

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25 APR AT 22:19

एक तिनके पर भौहों का तनना,
अपनी बारी पर बहानों का बनना,

ये अना की बारीकियाँ हैं..!!


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21 APR AT 0:34

डरती हूँ मैं, बहुत डरती हूँ,

पहले डरती थी अंधेरों से,
जंगलों से, जानवरों से,
अब डरती हूँ इंसानों से,
अपने ख्वाबों से,
एहसासों से...
डरती हूँ कि ये कहीं टूट ना जाए,
एहसास कहीं छूट ना जाए,
मन हारा है,
कोई भी इस दायरे में टिकता नहीं,
दर्द कोई मिटता नहीं...
डर है मुकम्मल दिल में
एक अरसे से..
उम्मीद के साथ अब कोई दिखता नहीं.!!

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17 APR AT 0:21

किन ख़्वाबों का लाश बनाया,
किन पर दिल का राज़ बसाया,
सारे तो झूठे ही थे,
सब बातों के टूटे ही थे,
हम बात समेटे,
याद समेटे..
सब तो दिल से छूटे ही थे..
कोई तो ख़्वाब पलकों का हो,
जिन पर एक आरज़ू टिके...
हम जिनसे कोई आस लगाए,
कुछ तो ख़ुदको सुकूँ मिले....

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14 APR AT 0:25

सिलसिले पुराने टूट जायेंगे,
जो मिले रास्ते में पीछे छुट जायेंगे,
हर ज़रें में ठहरी एक याद ही होगी,
जो लबों से मिले तो मुस्कुरायेंगे..!!

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5 APR AT 16:11

जिन बातों का मज़ाक बनाते थे,
उन्हीं बातों से मज़ाक बनकर रह गए हैं..!!

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28 MAR AT 22:38

दर्द उतना ही नहीं है जितना दिख रहा है,
बाज़ार उतना ही नहीं है जितना बिक रहा है,
ज़ख़्मों की गिनती तो रही सफ़र में,
पर कुलमिला कर सब ठीक रहा है। ।

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26 MAR AT 16:48

यूँ तो चेहरे पर सब अच्छा अच्छा है,
पर दिल में एक शरारती बच्चा है,
नहीं पसंद उसे देहलीज़े दुनियाँ की,
उसे पसंद हैं मनमानियाँ,
थोड़ी कच्ची शैतानियाँ,
थोड़ा बेवजह का गुस्सा,
कोई नादानी भरा किस्सा,
एहसास बेफिक्र हो,
बेबात का जिक्र हो,
यूँ ही शाम ढल जाए,
बेजान होता दिल,
यूँ ही संभल जाए..!!

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24 MAR AT 14:21

जिनसे मिलने की ख़लिश हो,
उसीसे मिलने में ख़लल पड़ता है !!

जो चेहरे कभी अंजान थे हमसे,
उन्हीं पर दिल फिसल पड़ता है !!

सारी उल्फ़तें कायनात की फीकी हो जाती,
जब कभी चाँद अकेले निकल पड़ता है !!

जिन रास्तों को छोड़ा था पिछे किसी मोड़ पर,
हर बार पहला कदम उधर ही निकल पड़ता है!!

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