गुस्ताख़ दिल रखता है हसरत अब भी तुझे पाने की । कई दफा नाकाम कोशिश की है तुझे भूल जाने की । हर दफा तेरी यादों का सावन उमर-उमर बरस जाता है । अपने इस गुस्ताख़ दिल पर मुझे तरस आता है । आहिस्ता-आहिस्ता खुद से तुझे हटा दूं । ए सनम चल तुझे अब मैं भुला दूं 💔💔 ।।
आदमी से शुरू , आदमी पर खत्म । आदमी ही मुसाफिर , आदमी का ही सफर । आदमी है आवारा गर नही है उसका घर । आदमी तो करता यहां जैसे तैसे बस गुजर । आदमी से शुरू , आदमी पर खत्म । आदमी का सफ़र.. आदमी का सफ़र..!