👍पेंसिल के अक्षर जैसे👍
मकड़जाल में
उलझ गए हैं,
मच्छर जैसे।
टूट गए सब पंख बेवजह,
धूलधूसरित बदन हमारा।
विजयी रहा विश्व में लेकिन
अपनों में अपनों से हारा।
मिटा जा रहा हूँ,
पेंसिल के,
अक्षर जैसे।।
कैसे पार करे भवसागर !
मार्ग मुक्ति के सभी बंद हैं।
थोड़ी है उम्मीद हवा से,
लेकिन उसकी चाल मंद है।
भटक रहा हूँ
दर-दर आज,
निरक्षर जैसे।।
कृतिकार
सन्नी गुप्ता 'मदन'
9721059895
अम्बेडकरनगर
-
Sunny gupta madan
(सन्नी गुप्ता मदन)
54 Followers · 3 Following
Poet
Joined 25 May 2018
1 JUN 2020 AT 1:51
31 MAY 2020 AT 10:01
👍जब तक पक्की सिलन नहीं है👍
पाँव फिसल जाएगा
थोड़ा, कदम संभल कर
आगे रखना।
अभी नई कोपलें लगीं हैं,
नरम टहनियां कोमल दल है।
धीरे-धीरे सभी बढ़े हैं,
जिन पेड़ो में पीले फल हैं।
-
24 DEC 2018 AT 12:16
मानव तेरे कर्म में,कुछ तो खोट जरूर।
मुँह ढ़कने पर बेटियां तभी हुई मज़बूर।।-
23 DEC 2018 AT 11:00
अब गर्मी सा सूर्य में ,रहता नही घमंड।
रेफ्रिजरेटर की तरह,पड़ा ठंड में ठंड।।
-
15 DEC 2018 AT 17:31
ऐसे कैसे मान लें, उसको हम बेकार।
जिसको मिली दहेज़ में,नई सेंट्रो कार।।
-
12 DEC 2018 AT 17:54
परेशान कर दे तुम्हे,इसकी कहाँ मज़ाल।
बस पढ़-लिख कर जाइये,हलुवा लगे सवाल।-
12 DEC 2018 AT 0:36
क्यों अपनों के बीच में,हुई आपकी हार?
इस पर मंथन कीजिये, आप स्वयं सरकार।।-
9 DEC 2018 AT 19:58
गियर बढ़ाती जा रही,एक-एक हर बार।
धीरे-धीरे सर्द अब,पकड़ रही रफ्तार।।
-
8 DEC 2018 AT 11:47
सबसे मत मिलिये 'मदन',विनत भाव करजोर।
वरना दुनियाँ आपको,समझेगी कमजोर।।
-
6 DEC 2018 AT 22:57
दाँत किटकने लग गई, निकल न पाई बात।
सर्दी जब कहने लगी,सर्दी के हालात।।
-