Sunjana Luthra   (कफ़्फ़ारा)
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ज़मीं में धसी आसमानी चिड़िया
Joined 3 April 2020


ज़मीं में धसी आसमानी चिड़िया
Joined 3 April 2020
21 JUL 2021 AT 23:52

अब की बार अंगुली जलाई गई
तुम्हारी याद में जब बीड़ी सुलगाई गई

रेज़ा-रेज़ा होकर बिखरे नज़र आए
अंधेरे को जब आग दिखाई गई

धुआं-धुआं सा तब सांस में महका
खुली खिड़की जब बंद करवाई गई

ज़िंदगी को खूब हंसी आई हम पर
जब मौत जबरन बुलाई गई

भूल बैठा है वो उसरत के दिन
जब महंगी सिगरेट उसे दिखाई गई

मुहब्बत में दगा की तो अब अफ़सोस नहीं
यहां कफ़्फ़ारा करते-करते बीड़ी सुलगाई गई।

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1 JAN 2021 AT 0:54

तुम इश्क हो मेरा
लेकिन तुमसे मोहब्बत अभी बाकी है।
वो जो प्यार मैंने किया
उसे लव का नाम देना अभी बाकी है।

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11 JUN 2020 AT 14:14

दिल्ली की दिल्लगी को हराम लिखा
बिन आशिक़ के दिल का आराम लिखा।

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28 MAY 2020 AT 14:33

हाय! ये क्या तमाशा चल रहा है
कभी महामारी,
कभी तेज़ बारिश
कभी लाशों का ढेर
कभी मजदूरों पर चड़ती रेल
कोई निढाल है बीमारी से
कोई पिट रहा है लाचारी से
कोई कोसो चलने को मजबूर
कोई चलते-चलते थकन से चूर
कहीं तेज़ तूफान
कहीं आग का रेगिस्तान
कहीं प्रसव पीड़ा की मारी
कहीं गर्भावस्था है भारी
हाय! आत्मा रो-रो तड़पती है
ये तमाशा देख रोज़
एक-एक सांस उखड़ती है
अब की बार एक और मंज़र
भयानक चल रहा है
धीरे-धीरे मेरा पहाड़ दहल रहा है
रोक ले थाम ले ए ख़ुदा
देख मेरा उत्तराखंड जल रहा है।

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27 MAY 2020 AT 11:32

मैं सत्य हूं
पर सत्य को झूठ के पांव के
नीचे दबा लेती हूं।
मेरा एक ही रूप है
पर किरदार अनेक बना लेती हूं।
मैं कभी सुंदरता की चादर ओढ़
गरुर का रंग पोत लेती हूं।
मैं कभी सहज होकर भी
झट से आपा खो देती हूं।
फिर इस मैले तन के लिए
दिखावे के कतरे इकट्ठे कर
चीर बना लेती हूं।
शुद्ध आत्मा की चीखें अक्सर
अन-सुनी कर देती हूं।
मुंह से गूंगी हूं अक्सर
पर पन्नों पर चुप्पी तोड़ देती हूं।
सत्य को रख भीतर किसी कोने में
झूठ के घाव फोड़ लेती हूं।
छोटे-छोटे काम फ़र्दा पर छोड़
आलस की भी सीमा तोड़ देती हूं।
मैं सत्य की खोज में
फिर किसी सच को झूठ बना छोड़ देती हूं।
तमाम ख्वाहिशों के जीवन को सत्य बता
मौत को झूठ करार कर देती हूं।
मैं सत्य हूं भीतर से
पर सत्य को झूठ के पांव के
नीचे दबा लेती हूं।

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25 MAY 2020 AT 20:37

देख ना माई आज ईद है
तू आएगी मेरी ईदी देने
मुझको पूरी उम्मीद है
देख ना माई आज ईद है।

मैं जब भी करती थी मर्ज़ी अपनी
तेरा मुझको कभी ना टोकना
तुझे याद है वो मेरे
सबसे छुप-छुप के रोज़े रखना
सहरी के लिए मेरे साथ
सुबह के तीन बजे तक तेरा भी जगना
ख़ुद की पूजा छोड़
मुझ संग इबादत में तेरा भी झुकना।

बड़ी मोहब्बत से फिर ईद को मनाना
मेरी खुशियों में तेरा भी शामिल हो जाना
बिन मांगे मुझको ईदी का तोहफा देना
सब मेरे लिए हर दफा
ख़ुद के लिए कुछ भी ना लेना।

तेरे मेरा रिश्ता बड़ा अजीब है
तेरे ना होने के बाद भी
इस रिश्ते की बुनियाद सजीव है
तू आएगी ना अम्मा मेरी ईदी देने
मुझको पूरी उम्मीद है
देख ना माई आज ईद है।

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23 MAY 2020 AT 12:08

तुम गर हिन्दू हो, तो मैं मुस्लिम हो जाऊंगी,
तुम संग दोस्ती को, सारे रिवाज़ तोड़ आऊंगी।

तेरे कृष्ण की राधा संग, मैं भी दीवानी हो जाऊंगी
नाचूंगी गली गली, दोहे मीरा के गाऊंगी।

छोड़ अपने धर्म को, प्रेम मैं फैलाऊंगी
तेरे राम को भी मैं, अपना बनाऊंगी।

एकता में ताकत है, नबी के किस्से सुनाऊंगी
मां- बाप ही ईश्वर है, ये सीख सिखलाऊंगी।

गर तुम मुस्लिम हो, तो मैं हिन्दू हो जाऊंगी
तुम संग कर दोस्ती, नया रिवाज़ मैं बनाऊंगी।

तेरे नबी की इबादत में, खुद भी झुक जाऊंगी
हिंदी तुम्हें सौंप, मैं उर्दू हो जाऊंगी।

रमज़ान के दिन, एक रोज़ा मिरा भी होगा
होली तेरी होगी, ईद मैं मनाऊंगी।

मज़हब की बातें, छोड़ दूर कहीं
इंसान को इंसान की, इंसानियत का पाठ पड़ाऊंगी।

मैं इंसान हूं, ना धर्म, ना जात मिरी कोई
ख़त्म नफ़रत को करने, मोहब्बत का इत्र हो जाऊंगी।

तुम गर हिन्दू हो, तो मैं मुस्लिम हो जाऊंगी
गर तुम मुस्लिम हो, तो मैं हिन्दू हो जाऊंगी।

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21 MAY 2020 AT 20:15

कुछ यूं हुआ फ़िर
बस में ना कोई रहा
मैं टूटी पतझड़ के पत्ते सी
वो चुप्पी में डूबा रहा।

बस फ़िर कुछ यूं हुआ
हक़ में ना कोई रहा
मैंने अपने शिकवे रख दिए
वो अपने गिले गिनाता रहा।

यूं हुआ कुछ फ़िर
मोहब्बत में ना कोई रहा
मैं किनारे के लिए तैरती रही
वो लहरों में अपनी कश्ती डुबाता रहा।

अब की बार हुआ कुछ यूं
क़ैद में ना कोई रहा
मैंने फ़िराक़ की मांग कर दी
वो हां में हां मिलाता रहा।। 💔

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18 MAY 2020 AT 15:06

एक तरफा ये साल है
दूसरी तरफ दुनिया बेहाल है
त्राहि-त्राहि मचि हुई है
शहर-शहर, कूचा-कूचा
और इंसान एकदम लाचार है।

हर तरफ तबाही का हाल है
मौसम की अपनी अलग ही चाल है
कहर ढाह रही है प्रकृति जोरों से
छा रहा अंधेरा चारों ओर
रुकी हुई रोशनी का इंतजार है।।

महंगाई की लूट से मचा बवाल है
तो कहीं इंसान राक्षस सा विकराल है
मजदूर भाई बहनों का बह रहा है ख़ून
फिर भी रफ़्तार में सरकार है
हाय! हम पर लानत है, धिक्कार है।।।

दानव बन बैठा है इंसान
बेजुबानों पर बड़ रहा अत्याचार है
मनुष्य-मनुष्य की जान ले रहा है
बहुत बड़ी इंसानियत की ये हार है
हाय! क़यामत, बस तेरा इंतजार है। 🤐

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14 MAY 2020 AT 15:58

मंहगाई की लूट से मचा बवाल है
तो कहीं इंसान राक्षस सा विकराल है
मज़दूर भाई-बहनों का बह रहा है ख़ून
फिर भी रफ़्तार में सरकार है
हाय! हम पर लानत है, धिक्कार है।।

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