कभी-कभी बिखरना भी अच्छा होता है
जैसे धुंध के बाद आंगन में बिखरती धूप,
पूनम रात की बिखरती चांदनी।।
अंधेरे इक मोहल्ले में बिखरी बत्तियों की रोशनी
चेहरे पर बिखरी हुई इक मुस्कान
खिड़कियों से आंगन में बिखरती हुई इक शाम
घर भर में बिखरे वो नन्हें हाथों के खिलौने
आंखों में टूटते बिखरते फिर जुड़ते ख्वाब
प्रेमिका के चेहरे पर बिखरे जुल्फों के जाल...
क्या यही प्रमाणिकता है इन प्रसंगों की,
बिखराव भी जरूरी है कुछ समेटने के लिए???
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PhD Scholor (Statistics) Insta@poetry_stream_of_thoughts
Love writings ✍️🖋️
I m here t... read more
बदलने लगी हूं मैं, संवरने लगी हूं मैं
बुरी आदतें कुछ छोड़ पीछे,
अपने ही नए रूप से मिलने लगी हूं मैं।।
ये बदलाव यूं ही नहीं मिला है मुझे
खुद को जानने का सबक यूं ही नहीं मिला है मुझे
आसां नहीं था खुद में खुद को ही ढूंढ पाना
हजारों की भीड़ में एक अपना चेहरा पहचानना..।।
एक शख्स ने आकर कहा मुझसे
तू अभी तुझमें ही खोया दुनिया बाहर एक और भी है
चलना तुझे है साथ उसके, एक जहां की बातें और भी हैं
हाथ थामे चल पड़े हम और कारवां चलता रहा
जहां तक कभी न सोच पहुंची
पग मेरा वहां चल पड़ा।।
सोचूं कभी सच्चा साथी हर मर्ज की दवा रखता है
तपती धूप में हल्की बूंदों सा वो
कभी अंधेरे में रोशनी करने का हुनर रखता है।।
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तू सिर्फ तू नहीं तुझ में मैं भी हूं, ये दिन सिर्फ तेरा नहीं इसकी हिस्सेदार मैं भी हूं...
ये रिश्ता अटूट चलता रहेगा यूं ही, इस प्यार की डोर एक हाथ तेरे,तो दूजी ओर थामे मैं भी हूं...
तुझसे मिलने की आस, तुझे बस एक झलक जी भर के इन आंखों में भरने का ख्वाब
हर रोज इस ख्वाब का तकिया लिए सोती हूं
तड़प तुझ में भी यार कुछ कम नहीं इसके एहसास से भरी कहीं मैं भी हूं .....
मेरे बिन कुछ कहे तेरा सब कुछ समझ जाना
रूठूं जो कभी मैं तेरा हर हाल मुझे मनाना
मैं भी अपनी सारी खुशियां तेरे नाम करना चाहती हूं
तेरे नाम का सिंदूर अपनी मांग सजाना चाहती हूं
मेरी दुआओं का पहला नाम है तू
तेरी प्रार्थनाओं में शामिल मैं भी हूं....
हाथ थामे तेरा जिंदगी का हर दिन जीना चाहती हूं
ये तेरा प्यार जो नसीबों से मिला है मुझे
हर रोज इसे संवारना चाहती हूं
जन्मदिन के खास मौके पर क्या मांगू दुआओं में तेरे लिए,
मेरी हर खुशी हर दुआ तेरे नाम हो जाए
सफलता का हर रास्ता तेरी ओर मुड़ जाये
गम की परछाई तुझे छूने भी ना पाए
तेरे हर गम की धूप में छाया में भी हूं.....-
जरूरतों का बाजार बहुत बड़ा है
ये जरूरतों का बाजार बहुत बड़ा है....
इसका कोई ओर नहीं, इसका कोई छोर नहीं
न कोई सीमाऐं इसकी,न इसकी डोर कोई
मुट्ठी भर जमीं पे जैसे यह आसमान दबाए खड़ा है
जरूरतों का बाजार बहुत बड़ा है.....
कुछ पाते ही, अभी कुछ और पाने की इच्छा
प्यास कुएं भर की और समुंदर पी जाने की इच्छा
कभी चाहा कभी अनचाहा सा
कोई मेहमान जैसे दरवाजे पर खड़ा है
जरूरतों का बाजार बहुत बड़ा है....
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दूसरों में खोजता हूं,अस्तित्व में अपना
आज भी मेरी खोज मुझ तक नहीं पहुंची...
दूसरों के हौंसले जगाते हैं हौसला मेरा
आज भी मेरे हौसलों की उड़ान मुझ तक नहीं पहुंची
समय दिया दुनिया जगत को मैंने
आज भी घड़ी की सुइयां मेरे समय तक नहीं पहुंची
दूसरों को जानने में समय भरपूर दिया मैंने
आज भी खुद को जानने की चाह मुझ तक नहीं पहुंची
दूसरों को संवारने में दी नसीहतें बहुत मैंने
आज भी खुद को निखारने की चाहत मुझ तक
नहीं पहुंची-
दूसरों के कहने से पहले भी
स्वयं पर कुछ गौर तो कीजिए
अपना समय अपनी बुद्धि
कुछ स्वयं पर भी तो खर्च कीजिए !!!
क्यों हमेशा समय ही अपना मूल्य बताए ?
क्यों अपनी शक्ति पहचानने को,
कलियुग में भी जामवंत चाहे
क्यों इस काया को चमकाने के सौ यत्न करे तू ?
क्यों पहचान से अपनी ही तू दूर भागना चाहे!!!!
तू मन को अपने अविरल रख
निर्मल चंचल सा बहने दे
प्रेम के सागर में फिर से
परोपकार की नदियां मिलने दे
तुझमें ही राम कृष्ण बसे
रावण न खुद को बनने दे
मर्यादित आचरण अपना
हर घर में अयोध्या बनने दे।-
तेरी एक मुस्कान मेरे चेहरे पर हजार खुशियां बिखेर जाती है
तेरी परवाह करने की आदत एक पल न इस दिल से जाती है
क्या मांगू भगवान से तेरे लिए, इस ख्याल में ही अक्सर
तेरी खुशियों की दुआएं न जाने कितनी बार निकल जाती हैं-
सोचिए और उत्तर दीजिए ,क्या कभी यह समाज मिलकर भी रख पाया है रिश्तों में उतनी मर्यादा? जितनी यह अपेक्षा करता है एक अकेली स्त्री से....!!!
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तेरी "ना"में भी छुपी देखी है, मैंने एक अनकही "हाँ"
मैं इतना अबोध भी नहीं कि समझ ना पाऊं
विवशता, जो तेरी बातों में है
और इतना चतुर भी नहीं की
निकाल लूं जवाब तेरी हर अनकही बात का
जब तू नहीं बोलती तेरी आंखें बोलती हैं
मेरे अनसुलझे से सवालों को
कुछ सुलझाने की दिशा में
ये हर वक्त मुझे बांध कर रख लेती हैं
चाहतें बेहिसाब है मेरी, उम्मीदें बरकरार हैं मेरी
इस अधूरे रिश्ते की कहानी भी लाजवाब है मेरी
हर दिन निकलता है मेरा सूरज,
उम्मीदों की नई किरण लिए
जिससे बुनता हूं मैं तेरे संग जीने का
एक रंगीन संसार सपना
वो दुनिया हकीकत सी लगती है मुझे
अपने सपनों को वहां जीता हूं मैं तेरे संग
वहां बहुत खुशियां समेट कर रखी हैं मैंने
जिन्हें शायद कभी मैं जियूंगा तेरे संग
मुझे मेरी रंगीन दुनिया में बस यूं ही जीने दे
तू ना सही तेरी यादों का गहरा समुंदर है यहां
हो सके तो बनके लहरें इस समुंदर की
अब मुझे खुद में मिलने दे
मुझे बस यूं ही जीने दे
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चेहरे पर हरदम मुस्कान लिए
वो मेरा हर दिन महकाती है
उसकी हंसी से गूंजते घर की
दीवारें भी जिन्दा हो जाती हैं
हजारों ख्वाहिशें किसी गठरी में बांधे
वो बच्चों के सपनों में शुमार हो जाती है
अपनी पहचान, अपना अस्तित्व
सब कुछ परिवार के पीछे छुपा जाती है
खुद कुछ कम पढ़ी लिखी वो,
अक्सर गिनती में गड़बड़ कर जाती है
भूख हो जब दो रोटी की
मां मुझे अक्सर तीन दे जाती है
सोचती हूं 'मां' मेरी भी कभी एक 'लड़की' थी
जैसे मैं अनगिनत सपनों में खोई
मां के भी तो कुछ सपने होंगे??
समय बदलता है सबका पर, मां मेरी अब भी वैसी है
'विधाता' तुझे देखा नहीं पर मां तेरी परछाई जैसी है
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