ना जाने कब थम जाए...
सांसों की डोर,
बिखेरना खुशबू प्यार की...
यही दास्तान भली है.....
जिंदगी की सांझ ....
हो कि न हो....
अंत अवश्यंभावी है!
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कुछ कदम साथ चले ,बने हमसफर तो नहीं?
जीवन की राहें भला आसान कहां होती हैं?
मिलना भी , बिछड़ना भी.….
नियति के हाथों तय होते हैं.....
जगे जब हम होते तो भाग्य शायद जगता नहीं!
जब जो हम चाहें,वो हमें मिलता नहीं!-
रात....
बीतती रहती धीरे धीरे...
स्याह हो या सुखद....
रफ्ता रफ्ता कटते जाना ही है ...
फितरत इसकी,
मन मेरे ,धर धीर ....
उजाला आने को है!-
छांव गर चाहिए तो उम्र भर लगाओ पेड़ जरूर....
धरती के दामन को कर दिया है खाली तुमने!
ये भी भूल गए कि सांसें चाहिए गर तो....
पेड़ लगाना पड़ता है!-
प्रेम ......
कुछ और हो कि न हो....
यह तो है बस....
आत्मसमर्पण की एक छोटी सी कहानी।-
मर्माहत, पीड़ित,दर्द से बेचैन ....
आज हर भारतीय ......
समय है ये भी....
क्रोध से फुफकार उठो.....
उठो और फोड़ डालो उन आंखों को ...
जो उठें हैं ,तुम्हारी ओर.....
मां भारती के जख्म सोने नहीं देते...
आज अंगार चाहिए ,रुदन नहीं...
बदला खून का खून ही!-
कभी अनबुझ पहेली सी.....
तो कभी ....
प्रवाहित जीवन पथ में.....
अनेक रंगों की रंगमय कथा सी...
अथक,अनवरत चलायमान..
नित नूतन.....
एक ही परिधि में गतिमान.....
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