हमारे वीर जवानों ने जो कहा वो कर दिखलाया है ,
दहशतगर्दों को उनके देश की मिट्टी में ही मिलाया है |
हमारी बेकसूर भाइयों का जिसने कत्लेआम किया ,
इंतक़ाम की ज्वाला में उन आतंकियों को ही जलाया है|
अपनी बहनों के राखी का उन्होंने कैसे कर्ज चुकाया है ,
"ऑपरेशन सिंदूर "चला उनको इंसाफ दिलाया है |
यूं तो पूरे विश्व में हम "अहिंसा के पुजारी "कहलाते हैं ,
देश पर जब आंच आए तो हम भी शस्त्र उठाते हैं |
सुदर्शन चक्र चला उन अधर्मियों को मृत्यु के घाट उतारा है ,
इस" हिंद की सेना" ने न्याय और धर्म का परचम जग में फहराया है|
जय हिंद की सेना 🙏🙏-
हुई स्तब्ध मानवता ,शर्मसार ये दुनिया है |
मनुष्य के पाश्विक कृत्य से हैरान यह दुनिया है |
रगो में रक्त नहीं मानो विष दौड़ता उनके ,
मानव जाति को कलंकित करती ,उनकी आसुरिक प्रवृत्तियां है |
निर्दोष लोगों का कत्लेआम करते फिर रहे |
मजहब के नाम पर रक्त का व्यापार करते फिर रहे |
अपने को धर्म का मसीहा कहने वाले ,
दरिंदगी की हर हद को पार करते फिर रहे |
बस बहुत हुआ ,अब और नहीं ,अब और न सह पाएंगे हम |
अपने भाई बहन के कातिलों को यूं ही बख्श ना पाएंगे हम |
मोदी जी सेना से कह दे ,कर दे आतंकियों की नस्ल साफ |
पूछता है समूचा भारत, कब होगा आखिर इंसाफ ?
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वो बचपन के किस्से, वो छुटपनन के फसाने |
गुदगुदाते हैं दिल को, वो पुराने तराने|
वो निश्चल हंसी ,वो अल्हड़पन |
वो भाई बहन की मस्ती, वो निष्पाप मन|
मन भागता है उन्हीं बचपन की गलियों में ,
जहां छुटपन के खेल खेले थे हम मासूम कलियों ने |
पर वो कलियां आप परिपक्व हो गई है |
समझदारी में हमारी मासूमियत कहीं खो गई है |
जिम्मेदारियां ने हमें नयी पहचान दी है |
वो बचपन की मस्ती दिवास्वप्न बन गई है |
पर यह दिवास्वप्न मन को लुभाता है |
वो गलियारा हमें रह रहकर बुलाता है |
जैसे बाहें पसारे कर रहा है हमारा इंतजार ,
हमारे बचपन को अपने में जिंदा रख ,
हमें गले लगाने को है वह बेसब्र व बेकरार|-
तेरे तत्वों से बनी हूं मैं ,तेरे तत्वों में मिल जाऊंगी |
ऐ प्रकृति तेरा अंश हूं मैं ,तुझमें विलीन हो जाऊंगी|
बहती नदी की भांति मुझको भी बहते जाना है |
सागर में मिलती जैसे वह ,मुझको तुझमें समाना है |
अपनी बाहों को खोल मुझे अपनी आगोश में भर लेना |
तेरी गोद में सोने की मुझको थोड़ी सी तू जगह देना |
तेरा संजीवनी स्पर्श पाकर मैं फिर नवजीवन पाऊंगी |
एक नवीन रूप में मैं फिर इस धरती पर आऊंगी |-
हम लड़ते थे ,झगड़ते थे फिर पल में मान जाते थे ,
भाई -बहन ,दोस्तों के साथ घंटों बतियाते थे ,
कभी कित- कित तो कभी कबड्डी
तो लाइट जाने पर लुका-छिपी का लुत्फ उठाते थे,
वो भी क्या दिन थे जब हम बचपन के खेलों का
जी भर कर आनंद उठाते थे|
पापा की उंगली थामें शाम को घूमने निकल जाते थे ,
जो मन हो वह सारी जिद उनसे पूरी करवाते थे ,
ना कोई भय था ना कोई चिंता ,
उनके साए में बेखौफ नजर आते थे ,
वो भी क्या दिन थे जब पिता के संरक्षण में
हम स्वच्छंद जीवन बिताते थे|
मम्मी- मम्मी कहकर घर आते ही मां से लिपट जाते थे ,
स्कूल की सारी बात सबसे पहले उनको ही सुनाते थे ,
झूला झूलते -झूलते उनके हाथों से
खाने का एक-एक निवाला खाते थे ,
वो भी क्या दिन थे जब हम मां के आंचल में
इस दुनिया की सारी खुशियां पाते थे|
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मैं एक ईट प्रस्तर से बनी खाली इमारत हूं |
ना कोई शख्स बसता है मुझमें बस बेजान इबारत हूं |
धीरे-धीरे भग्नावशेषों में बदलती जा रही ,
ढहने के कगार पर खड़ी मैं एक बेमानी अकारत हूं |
मुझमें भी स्पंदन था, जीती थी मैं भी कभी |
नई नवेली दुल्हन सी सजी थी मैं कभी |
मुझ में बसते लोगों के सपनों को जिया था मैंने भी कभी|
उनके साथ हंसती और रोती थी मैं भी तभी |
पर अब उनके बिना मैं एक पिंजर मात्र हूं |
निशब्द ,तटस्थ ,मौन और उदास हूं |
अपने अवशेषों को मिट्टी में मिलते देखने हेतु ,
मृत्यु शैया पर लेटे भीष्म की भांति मैं आज हूं|
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प्रकाश के इस पर्व, में दीपों के त्यौहार में ,
चलो हम सब भीग जाए खुशियों की फुहार में |
अमावस की इस रात को सूर्य सा रोशन करें ,
हर घर, हर आंगन में असंख्य दीप यूं जले|
न मन में कोई भेद हो ,ना कोई राग द्वेष हो,
दीये और बाती सा सबके मध्य अटूट स्नेह हो|
थाल में मिष्ठान ना सही पर वाणी में मिठास हो,
जन-जन के हृदय में एक दूसरे के प्रति प्रेम और अनुराग हो |
मां लक्ष्मी और श्री गणेश का शुभ आगमन हर घर में हो ,
दीपावली के दिन इस धरा पर सुख, समृद्धि, सौभाग्य की बरसात हो|
दीपावली के पावन पर्व की सबको हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏-
मां , यूं तो 35 वर्ष का बिछड़ाव स्वयं में एक लंबा समय है |
पर हमारे लिए तो मानो यह एक सदी की भांति है ,
तूने देखा है ना मां ,तेरे बिना जिंदगी हमने कैसे रो -रो कर काटी है |
मां ,तुझे तो हमारे मन के भावों का संपूर्ण आभास है ,
हमारे दर्द, हमारी तड़प का बहुत अच्छे से एहसास है|
मां ,एक दिन ऐसा नहीं बितता जब तुझे याद नहीं करते ,
तेरी ममता, तेरी गोद के लिए तेरे बच्चे नहीं तरसते |
ऐसा लगता है तुझसे ढेर सारी बातें करें ,
अपना मन खोल कर तेरे सामने धरे|
पर फिर अपने नादान दिल को हम समझाते हैं ,
तू अब हमारे साथ नहीं ये यकीन दिलाते हैं |
आसमान की तारों में तेरा अक्श तलाशते हैं ,
उनको ही अपने सारे गिले शिकवे सुनाते हैं |
और फिर जब उस तारे की टिमटिमाहट हम पर पड़ती है ,
ऐसा लगता है तू अपना हाथ हमारे सिर पर धरती है |
और कहती है, मेरे बच्चों घबराने की क्या बात है ?
मैं ना सही ,मेरा साया सदा तुम्हारे साथ है |
अपनी हर मुश्किल घड़ी में मुझे अपने पास ही पाओगे ,
अपने मन की आंखों से अपनी मां को हमेशा देख पाओगे|
मां- हमारी- मां प्यारी मां ♥️♥️-
कुछ आसमान में मदहोशी थी,
कुछ तारों की तपिश भी बाकी थी ,
चांद की चांदनी भी थोड़ी सी रूमानी थी |
कुछ उनींदी सी आंखें थी ,
कुछ नींद रह गई आधी थी ,
उसके ख्वाबों में भी मानो चढ़ी हुई ख़ुमारी थी|
कुछ पत्तों की खड़खड़ाहट थी ,
कुछ हवा की सरसराहट थी ,
ऐसा लग रहा था जैसे प्रिय के आने की आहट थी |
उन पदचापों के आभास से उसके मन की व्याकुलता कैसी थी ?
दौड़ कर पट खोल दिया ,मिलने की व्यग्रता ऐसी थी ,
पर इस बार भी उसकी उम्मीदों ने अपनी सांसे तोड़ी थी ,
प्रियतम से मिलन की प्रतीक्षा रह गई अब भी अधूरी थी|
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हे गजानन,हे गणपति ,करती हूं पूजा मैं तेरी |
सबका तू कल्याण कर, यही है विनती तुमसे मेरी |
मां पार्वती की आज्ञा पालन हेतु तुम शीश भी कटवाए हो |
माता-पिता को पूरी पृथ्वी मान उसकी परिक्रमा भी कर आए हो|
देवताओं में प्रथम पूजनीय तभी तो तुम कहलाए हो |
महाभारत काव्य की रचना के लिए अपना एक दंत भी तुमने दिया |
हे गजकर्ण ,हे गणपति, तुमसे है मेरी कामना ,
इस जग से सबके दुख को हर के ,इतनी सी है मेरी याचना |
तेरी पूजा से सबके कार्य सिद्ध हो जाते हैं |
हे विनायक ,तेरी भक्ति से समस्त संकट भी टल जाते हैं|
अपने भक्तों के सारे विघ्नों को भी तुम हर पाते हो |
विघ्नहर्ता के नाम से तभी तो पूजे जाते हो |
हे गणेश ,हे गणपति ,करती हूं हरदम पूजा तेरी ,
मेरे भी सब विघ्नों को हरना, इतनी सी है तुझसे विनती मेरी|
गणपति बप्पा मोरया 🙏🙏
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