मुक्ति के कगार पर
या बनारस के घाट पर
या जिन्दगी की किसी राह पर
या मृत शय्या के कगार पर
फिर इक बार मिल जाऊं
क्षितिज के किसी छोर पर ...-
जब आपकी उपस्थिति को कैद समझा जाने लगे
तब सब मुक्त करके , स्वयं को मुक्त कर लेना उचित है ।-
आज फिर लिखने का मन किया
लिखना क्या था ?
मन की बात या कुछ ऐसी बात जो सामने
पुकार पुकार कर कह रही हो कि मुझे लिख दिया जाये ...
तो सबसे पहले मन की बात
फिर एक जिक्र किया जाए कुछ इस कदर की
तेरी याद का जिक्र हो उसमें
आंखो की नमी हो उसमे
रूठी हंसी की कमी हो उसमे
लोटकर नही आते जाने वाले
बस तेरी यादों की सर जमीं हो उसमे ।
और इक मुलाकात अधूरी ही सही
पर पूरी से कम ना रही ....-
हर बात को कर दरगुज़र
जीवन के अंतिम मोड़ तक
इक इंतजार बस , उस राह से
इक आवाज सुनने ..तक का है सफर
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पापा ने सिखाया कभी ना हिम्मत हारना
मुश्किल हो सफर या संघर्ष आये अनगिनत
स्वयं को है नित अनवरत निखारना ।-
किसी मोड़ पर फिर मिलेंगे
अलविदा कहने वाले .....
आकाश की ऊंचाई मापकर
ख्वाब को संजोने थे
पल भर में ख्वाब राख में बदल गये
जिन्दगी का शाश्वत सत्य तो यही है
किन्तु कब किस मोड़ से कैसे निकल जायेंगे
ये प्रकृति ने निश्चित कर दिया है -
फिर मिलेंगे ख्वाब बनकर
या ख्वाबों मे रहकर या ख्वाबों में जीकर ...
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एक जिन्दगी , संघर्ष अनेक
हर रूप अलग, मंजिल है एक
अनवरत चलते रहकर
हौसला कायम रखना
जिन्दगी की मशाल को जलाए रखना
पलायन होता रहेगा
संघर्ष के दौर से
अपनी जिन्दगी का
कारवां जारी रखना
सफलता के शोर से .....-
पीड़ा
इक माँ ही जाने अपने
बच्चें से दूर होने की पीड़ा
इक पंछी ही जाने आसमां में
बिछड़ जाने की पीड़ा
उस पीड़ा का क्रंदन हो
मन से मन तक बाहर - भीतर
इक आत्म वेदना
बाहर - भीतर करती है
आत्म क्रंदन
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