The more wealth a person has, the less he has.
जिसके जितना धन है |
उसको उतना कम है |
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क्या खूब फरेबी थी,
मुझ पर इतराने वाली |
दम निकाल कर मानेगी,
क्या हमदम बनाने वाली |-
अब मेरे लिए उस से वक़्त नहीं निकल पा रहा है |
क्या मेरे लिए जो वक़्त था वो कही और इस्तेमाल किया जा रहा है |
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मैं मेरा दर्द लिखता हूँ |
मेरी तनहाई लिखता हूँ |
वो कहती है ना लिखा करो मेरे बारे तुम,
अरे कोई समझाओ उसे...
मैं खाली बिस्तर आंसुओं से भीगा तकिया,
और जिस्म पर तन्हां पड़ी रजाई लिखता हूँ |
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आप शादी के बंधन में बंध जाएंगे |
लगता है हम भी अब बिछड़ जाएंगे |
कोशिश करोगी क्या तुम मिलने को मुझसे,
या फिर अब दिनों दिन यार हम मिल ना पाएंगे |
मोहब्बत जिस्म की नहीं है यार तुमसे,
लगता है तुम्हे देखने को भी यार हम तरस जाएंगे |
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अकेले में सोचता,
तुमसे बहुत कुछ कहूंगा |
पर तुम जो मेरे सामने हो,
मैं कुछ कह नहीं पाता |
अजीब सी उलझन होती है आजकल,
मैं तुम्हारे बिना रह नहीं पाता |
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जिन किताबों के पन्ने,
तेरे दिए गुलाबो से भरे पड़े है |
बहुत याद आती है आज भी वो,
पुरानी किताबों की खुशबू ,
जो जाने कितनी ही यादों और,
हमारी मुलाकातों को समेटे पड़े है |
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जिसकी हमें आस थी |
उसको किसी और की ही आस थी |
अब हमने भी छोड़ दिया दमन उसका,
काश ! के वो कभी तो कहेगी तू मेरे लिए ख़ास था |-
हमें हर मोड़ पर हर किसी ने ठुकराया,
पर हमने उसे अपनाया जिसे दुनिया ने ठुकराया,
पर मैं उसे कभी रास ना आया,
उसने तो मुझसे अपना काम निकलवाया,
दिल से तो उसने किसी और को चाहया,
पर उसने भी उसे ठुकराया,
फिर मैं उसके काम आया,
मैंने उसका दिल लगाया,
फिर भी मुझ पर ही इल्ज़ाम आया,
वो कहती तुम ना होते तो ये सब ना होता
इश्क़ में मैंने बस खोया कभी कुछ ना पाया |
दुःख दर्द तकलीफ और इल्ज़ाम मेरे हिसे आया |
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दिल-ऐ-दिवार मिटा नहीं करती |
सुना है ज़िन्दगी बार बार मिला नहीं करती |
वीरान हुई बस्ती मुड़ सज़ा नहीं करती |
लाख सज़ा दो कब्रों को दुनिया वालो,
पर कब्रों पर रौनक लगा नहीं करती |-