Sunil Hiyotee  
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Joined 26 September 2019


Joined 26 September 2019
18 FEB AT 21:58

जब मिरी आंखों का दर्द पढ़ नहीं सकता
उसकी किताबें पढ़ना फ़िज़ूल है "सुनील"

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13 FEB AT 22:12

मैं ढूंढूंगा तुम्हें
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Caption में पढ़े पूरी नज़्म

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3 FEB AT 22:23

चलो फिर से इश्क़ किया जाए
क्यूं न खुद को तबाह किया जाए

हर बार मुहब्बत दगा नहीं करती
फिर मुहब्बत को भी आजमाया जाए

खुदकुशी हल नहीं किसी मसले का
बेखौफ जिंदगी को जिया जाए

महबूब निकाल कर मेरे जिस्म से
मुहब्बत को पंखे से लटकाया जाए

कोई अक्स रह गया है उसका मेरे अंदर
किस दर पर जाकर उसे मिटाया जाए

खुद ही खुद की हालत पर तरस आता है
मेरे घर से इन आईनों को हटवाया जाए

आज क्यूं ये मेरा जी इतना घबरा रहा है
उसकी सलामती जाननी है उसका नंबर मिलाया जाए

’हाफ़ी’ ने कहा है वो जहर लगती है
मुझे भी मरना है मुझे भी जहर पिलाया जाए

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27 JAN AT 22:45

उसकी बातें क्यूँ लगने लगी है बहकी बहकी
वो लड़की तो ऐसी नहीं थी कभी बहकी-बहकी

उसके लहजे में था हंसकर बात करना
मुझे गलत लगा कि मेरी बात पर हुई है बहकी-बहकी

इन हवाओं को भी आज कोई मिलने आने वाला है
जिस्म को छूती है तो लगती है बहकी-बहकी

इक जाम पिया तो ये मालूम हुआ
शराब तो हर घूंट में है बहकी-बहकी

मैं आज उसकी बातों में नहीं आऊंगा
वो लाख कर ले बातें बहकी-बहकी

उसके मोहल्ले का रास्ता मुझे खींच लेता है
गुजरता हूं तो लगती है मेरी चाल बहकी-बहकी

उसका इस राह से गुजरना मुझे महसूस होता है
फिजाओं में मिलती है उसकी खुशबू बहकी-बहकी

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6 JAN AT 9:25

गुजरा जमाना लौटकर नहीं आएगा
तेरा चेहरा कहीं नजर नहीं आएगा

हमें तेरा समझाना फ़िज़ूल है
हमें तेरे सिवा कुछ समझ नहीं आएगा

वो दौर ओर था लोग इश्क समझते थे
इस दौर में किसी को समझ नहीं आएगा

तुमको भूलना भुलाना आसान कहां है
ये नापाक ख़्याल दिल को भी नहीं आएगा

मै जीना चाहता हूं तेरे साथ उन लम्हों को
मगर वो कॉलेज का जमाना अब नहीं आएगा

तुम इत्मीनान से रहो अपने इस घर में
मेरे दिल में तुम्हारे सिवा कोई नहीं आएगा

तुम्हारा उसका रस्ता तकना फ़िज़ूल है "सुनील"
वो शख्स तो लौटकर कभी नहीं आएगा

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19 DEC 2024 AT 19:33

रातों को जागा कौन करे
हमको याद भला कौन करे

गर महफिलों से गुमशुदा भी हो जाए तो
हम जैसों को तलाशा कौन करे

जमाने में है सबको जिस्मानी मुहब्बत
रूहानियत वाला इश्क कौन करे

मुझे अब परदेशियों का इंतजार नहीं
काफिरों पर ऐतबार कौन करे

मेरी मां डरती है मेरे दफ़्तर के रस्तों से
तनख्वाह अच्छी हो पर ऐसी नौकरी कौन करे

वक्त उसका भी कीमती है वक्त मेरा भी फिजूल नहीं
पर उसके मिलने पर वक्त का खयाल कौन करे

अब तक मै उसकी गिरफ्त में हूं
उससे कहो मुझको रिहा कौन करे

इक मै ही हूं जो ये हिमाकत किए बैठा हूं
इक ही शख्स पर खुद को कुर्बान कौन करे

उसको अंधेरे का डर था सो मेने घर जला दिया
मुहब्बत में इससे भी ज्यादा नुकसान कौन करे

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24 NOV 2024 AT 19:10

प्रेमिकाएं उत्सव मनाती रही है मिलन का
प्रेमी दुःख झेलते रहे मिलकर बिछड़ने का

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15 SEP 2024 AT 18:35

कुछ ख्वाब किताबों में अधूरे रहेंगे
कुछ पन्ने कभी नहीं पलटे जायेंगे

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9 SEP 2024 AT 20:42

ओर एक दिन वो खफा हो गया मुझसे
मेरी दुनिया बेरंग हो गई "सुनील"

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8 AUG 2024 AT 20:28

बेटियां अकेली नहीं होती विदा घर से
वो अपने साथ ले जाती है
घर की तमाम रौनके
घर की खिलखिलाहटें
घर के लोगों की मुस्कुराहटें
और दे जाती है
खिड़कियों को उदासी
दरवाजों को इंतजार
उनकी हँसी से गूंजते घर को एक खामोशी
सब सुनसान कर जाती है बेटियां

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