Sunil Dhoundiyal   (Sunil Dhoundiyal)
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Joined 25 June 2020


Joined 25 June 2020
18 MAR 2023 AT 18:44


संस्कृत:
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा
कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
हिंदी:
सर्प-फन मणी जटा में पीत दीप्त है,
केसरी मणी-प्रभा से दिशा सब प्रदीप्त है।
मनु-मुदित है भक्तिलीन हे प्राण देवता,
गज-चर्म के वसन धरे परमपिता शिवा शिवा।।४।।
-सुनील ढौंडियाल।

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7 JUN 2022 AT 14:57

(८)
हे! अंशुमान क्यों इतने तप्त!
तुम क्रोधित क्यों इतने संतृप्त!
ओ! नीरद नीर उठाए तुम,
किसके संग हो इतने लिप्त!

अब बरसो बरसो घोर घाम है!
नर पशु खग व्याकुल तमाम है!!
•सुनील ढौंडियाल.

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7 JUN 2022 AT 11:28

(७)
दक्खिनी हवाओ दक्कन से!
उत्तर को बहो उत्सुक मन से!
हे! नीर समीरो बहाे बहो,
लो आलिंगन भू के तन से!

अब बरसो बरसो घोर घाम है!
नर पशु खग व्याकुल तमाम है!!
•सुनील ढौंडियाल.

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6 JUN 2022 AT 10:47

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5 JUN 2022 AT 17:11

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5 JUN 2022 AT 9:18

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4 JUN 2022 AT 13:05

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4 JUN 2022 AT 12:33

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3 JUN 2022 AT 14:59

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6 OCT 2021 AT 10:52

दिन भर मुझसे मुखातिब न था,
न रू-ब-रू रात को!
उसने शायद दिल पर ले लिया,
मेरी किसी बात को!!
- नील'सुनील'.

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