काश के चक्कर में उलझी- उलझी सी जिंदगी,,
चाहते है अबोध बचपन की सुलझी -सुलझी सी जिंदगी,,-
जितने के लिये प्रयास बाकी है,,
कैसे तोड़ेगी ए जिंदगी हौसल... read more
कैसा है, यह जीवन;
क्यों दुःखता हैं, यह मन।
प्रश्नों के उत्तर मिल क्यों नहीं जाते;
भगवान स्वयं क्यों नहीं बताते;
क्यों रची प्रकृति उसने ,क्या स्वार्थ था;
लीला करना ही केवल परमार्थ था।
दुःखमय संसार में सुखी कौन हैं;
प्रश्न बहुत हैं, पर ज्ञानी मौन हैं।
शून्य या अनन्त किस ओर जाना हैं;
एक ओर अध्यात्म , दूसरी ओर जमाना हैं ।
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बाल लीलाओं से मन मोह जाएगा,,
तुम बने अर्जुन तो वह सारथी बन जायेगा,
असमंजस होगा तो गीता भी सुनाएगा,
राधा पुकारेगी तो घनश्याम फिर आएगा।-
में अपनी मोहब्बत को कुछ इस तरह जताउंगा,,
तू एक id से ब्लॉक करेगी में 15 नई बनाऊंगा।-
घर पढ़ लेंगे ,ये भ्रम अब हमने तोड़ दिया,
अब घर किताबे ले जाना हमने छोड़ दिया।-
इश्क़ में जाना दिखावा हम नहीं करते,,
दुनियां के सामने आँखे नम नहीं करते,,
बेशक नाराज होते हैं तेरी नादानियों पर
फिर भी मोहब्बत कम नहीं करते,,
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ख़ुशी हो या गम हर वक्त प्यार को छिपाते हैं,
गुस्सा कर , नाराज होकर दुनियादारी सिखाते हैं
तुम्हें हो हल्का सा बुखार तो भी डॉक्टर को दिखाते हैं,,
खुद 102 डिग्री पर भी गोली से काम चलाते हैं,,
परेशानियों और गम के अंधेरो में एक
पापा ही तो हैं जो खुशियां ढूंढ के लाते हैं।
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बड़े खुशनसीब हो तुम जो हम तुम्हें मिले,,
वरना सोमवार के व्रत तो ओरो ने भी किये थे।-
घर मे पहुचते ही ना दिखे तो बेचैन हो जाते हैं हम,,
देख कर सुकून और आँचल की छाँव को पाते है हम,,
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