बचपन के वो दिन.......
आज फिर बचपन में ,
खो जाने का दिल करता है,
मदमस्त हो जाने का दिल करता है।
वह माँ का चिल्ला कर जगाना, उसे अनसुना कर मेरा सोते रहना।
पापा का डांट ,जिसे सुनते ही,
किताबें खोल पढ़ने का .ढोंग करना
हर सुबह जैसे- तैसे,
स्कूल पहुँचना!
टीचर की फटकार सुनना,
बस टिफिन ब्रेक का इंतजार करना।
ना होमवर्क का टेंशन लेना,
ना 90% मार्क्स लाने का सोचना।
बस पास हो गए हम,
यानी आधी दुनिया जीत गए हम।
घर लौटते ही बस्ता फेंकना,
नंगे पैर खेलने को भगाना।
जब तक पापा की छड़ी ना दिखती,
घर लौटने की ना सोचना।
घर लौटते ही,
माँ के थप्पड़ से स्वागत होना।
फिर ना मैगी ,ना चाऊमीन,
दाल चावल ठूसना।
और किताबें लेकर बैठ जाना,
किताबों की आड़ में,
कॉमिक्स लेकर पढ़ना।
कितने मजे, वह भी क्या दिन थे?
ना जिम्मेदारियों का बोझ?
ना किसी से आगे बढ़ने की होड़।
काश! कहीं से लौट आता ?
फिर से खो जाते,लौट जाते बचपन में।
हाँ, आज फिर से एक बार,
बचपन में खो जाने का दिल करता है....
*****Suneeta,26/4/24
-