Sunanda Sharma   (Sunanda)
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Joined 20 July 2020


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Joined 20 July 2020
30 MAY 2024 AT 16:10

नीर की आस

कई मीलों का सफर
दो बूँद आस दिलाता है
पैरों में लगे काँटे-कंकर
पूरे परिवार की प्यास बुझाता है
तीखी धूप न गर्म हवाएं
इन्हें कोई नहीं रोक पाता है
बच्चों के लिए पानी का ख्याल
इन्हें कई कोस तक चलाता है
कहीं पानी बहता देख
मन में यह ख्याल आता है
कहीं दूर किसी गाँव में
दो बूँद पानी के लिए
कोई जीवन का दाँव लगाता है।।

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29 APR 2023 AT 8:44

मजदूर
चूल्हे का धुआं आंखों में लग रहा है
साड़ी से बंधे झूले में
बच्चा मचल रहा है
न आंखों में तेज है
ना चेहरे पर चमक
कांटो की राह में
मानो जीवन निकल रहा है
दिन भर मजदूरी के सिक्के
पेट भर रोटी नहीं ला पाते
कठोर परिश्रम के बाद भी
गरीबी में वह परिवार जल रहा है
सपने खोखले हो चले
आशाएं दफन हो गई
जरूरत अब चाह बन गई
और सवेरे की राह तकते-तकते
उनका जीवन अंधेरे में गुज़र रहा है।।

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28 FEB 2023 AT 22:34

रात
ओढ़े चमकते सितारों की चादर
मनमोहक चंद्रमा जैसे ताज हो
शीतल हवा भी कुछ बहे ऐसे
जैसे सुरीला साज़ हो

ऐसे तो अंधेरा है
मगर देखो तो रोशनी छाई है
दिन की व्यस्तता को अस्त कर
यह सुकून के घड़ी लाई है

हजारों तारों की चमक है
या तेज एक चंद्रमा का
लोग कहते हैं यह प्रहर है
जगमगाती,सुरम्य "रात" का ।।

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15 APR 2022 AT 9:23

ये काले रेशमी बालों पर
न जाने कब सफेदी का आना हुआ
बालों को संवार कर फूलों से सजाने को
गुजरे जमाना हुआ
आंखों के काजल पर
अब चश्मे का पहरा है
स्वर्ण- सी चमकती सूरत अब
झुर्रियों से सजा चेहरा है
पर
कई अनुभवों को समेट कर
जीवन के हर पहलू से कुछ सीखकर
उम्र के हर पड़ाव को पार कर
पूर्ण किया है मैंने जिंदगी का यह सफर

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30 MAR 2022 AT 12:49

मौज मस्ती को उम्र में ना बांधो
यह मस्ती ही तो हर उम्र को जिंदा रखती है

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9 MAR 2022 AT 10:00

संध्या
जब दूर क्षितिज तक फैली
हो सूरज की लालिमा
जब उजास कम है और
दिखने लगे शीतल चंद्रमा
ना हो सूर्य की तपती किरण
न हो रात्रि की शीतलहर
जब सूर्य और चंद्रमा
मिलते है उस मनमोहक पहर
कुछ अंधेरा है
कुछ रोशनी अभी बाकी है
और यह सुरम्य दृश्य
'संध्या' की झांकी है।

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26 JAN 2022 AT 9:58

कहीं आंदोलन कई प्रयास
पर सपना एक हुआ करता था
तब हिंदू मुस्लिम बच्चा या बूढ़ा भी
आजादी के लिए मरता था
रक्त बहे , दंड सहे तब
मां भारती के लिए हर कोई कुर्बान था
खुद भले कितने ही अपमान सहे
पर सर्वोपरि भारत का सम्मान था
कितने बलिदानों के बाद
आज यह तिरंगा लहराया जाता है
इतने वर्षों बाद भी सुन उनकी गाथा
हर कोई रुआंसा हो जाता है
देश के लिए बलिदान ना सही
पर देश हित में कदम तो बढ़ाया जा सकता है
सिर्फ दो दिन याद करके क्या
उनके सपनों को साकार किया जा सकता है?

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14 JAN 2022 AT 13:36

सतरंगी पतंगों ने ढक दिया
यह नीला आसमान
हर छत पर बच्चों का शोर
भर रहा है ऊंची उड़ान
तिल गुड़ की खुशबू से
पूरा आंगन महक रहा है
बच्चे तो बच्चे सही पर
बुजुर्गों का भी मन खींच रहा है
एक पतंग कटी तो
पूरी टोरी दौड़ जाए
पूरे परिवार संग गजक एवं
लड्डू का स्वाद और भी बढ़ जाए
विलक्कू पोंगल बिहू और लोहरी
यह बनाएं इस दिन को और खास
यही प्रार्थना है कि सूर्य उत्तरायण के साथ
आपके जीवन में हो सुख व शांति का वास

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29 DEC 2021 AT 11:47

नई भोर
निकल रही है धूप की किरण
गहन कोहरे को भेदती हुई
जाड़े की निराशा से लड़ते
हर गरीब को आशा भेजती हुई
हटाकर में मायूसी की हवा
वो भोर की चादर ओढ़ाती है
नया दिन, नई शुरुआत कर
यह किरण उसे समझाती है
जो सच्चे दिल से मेहनत करे
उनसे तो यह रात भी घबराती है
तेरी मेहनत और परिश्रम की आग
गहन काले जाड़े को भी जलाए जाती है
चल, उठ, कोशिश तो कर
वह ईश्वर तेरे साथ है
कर्मों का फल मिलेगा जरूर
कहती किरण यह पक्की बात है
हिम्मत की लौह जगा कर
वह फिर उठता है
रात की निराशा छोड़
वो आशा की हुंकार भरता है
मेहनत करी ,तो कंबल मिला
अब उम्मीद से खड़ा है तन कर
फिर लड़ेंगे उस जाड़े से
जो आएगा गहन काला साया बनकर।

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11 DEC 2021 AT 8:52

जाड़ा
तीखी हवा के वार से
तन को झकझोर कर
फिर आ गया यह जाड़ा
गहन काला साया बनकर
फिर फटी कंबल का सहारा ले
अंधियारी रातों से लड़कर
फिर आ गया यह जाड़ा
गहन काला साया बनकर
रूह को भी कपाँ दे
ऐसी रात खड़ी है तन कर
फिर आ गया यह जाड़ा
गहन काला साया बनकर
छत है ये खुला आसमां
नीचे सोया है गरीब ठिठुरकर
फिर आ गया यह जाड़ा
गहन काला साया बनकर
अब सवेरा हुआ भी तो क्या
जागा है वो रात से डरकर
फिर आ गया यह जाड़ा
गहन काला साया बनकर

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