आज वो राहें भी अट्टाहास करने लगी,
जिन पर, कभी हम खिलखिलाया करते थे।
बड़ी दूर तक पीछे आकर कहने लगी
"क्यूँ, आज कहाँ हैं तुम्हारा चाँद?"
हमारी भी नजरों से नदियाँ बहने लगी
और दिल ने आह भरी
'ग्रहण' ही तो है,
'निकल' आयेगा मेरा भी 'चाँद'।-
"पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ..."-
पसरे सन्नाटे में हवाएँ सुनाई दे रहीं हैं,
सदक़े में झुकतीं कुछ बालें दिखाईं दे रहीं हैं ।
है कौन यहाँ किसको क्या ख़बर,
मुझे तो बस बेबसी दिखाई दे रहीं हैं।
चाँद से रूठी रागिनी सुनाई दे रही है,
रवि की तेजलिप्त लालिमा दिखाई दे रही है।
है कौन यहाँ जो फेरे एक नज़र,
मुझे तो बस मचलती शाम दिखाई दे रही है।
मेघों की जमघट सुनाई दे रही है,
बिजली की कड़कड़ाहट दिखाई दे रही है।
है कौन यहाँ जो ठहरे एक प्रहर,
मुझे तो बस बरसती बूँदे दिखाई दे रहीं हैं।
ऐ चाँद, रवि, और आसमाँ, जाओगे तुम सब और कहाँ,
मैं क्षितिज हूँ, पड़ेगा तुम्हें भी बस मुझमें ही समाना यहाँ ।
~सुनंदा जदौन
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चाहत है कि तिरंगे से लिपट सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाऊँ ,
ज़रूरत जब भी पड़े देश में बस यहीं राख़ हो जाऊँ !!
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Time doesn't make you forget,
It makes you Grow and
Understand things.
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पार्वतीनन्दनायैव देवानां पालकाय ते ।
सर्वेषां पूज्यदेहाय गणेशाय नमो नमः ॥
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