पसरे सन्नाटे में हवाएँ सुनाई दे रहीं हैं,
सदक़े में झुकतीं कुछ बालें दिखाईं दे रहीं हैं ।
है कौन यहाँ किसको क्या ख़बर,
मुझे तो बस बेबसी दिखाई दे रहीं हैं।
चाँद से रूठी रागिनी सुनाई दे रही है,
रवि की तेजलिप्त लालिमा दिखाई दे रही है।
है कौन यहाँ जो फेरे एक नज़र,
मुझे तो बस मचलती शाम दिखाई दे रही है।
मेघों की जमघट सुनाई दे रही है,
बिजली की कड़कड़ाहट दिखाई दे रही है।
है कौन यहाँ जो ठहरे एक प्रहर,
मुझे तो बस बरसती बूँदे दिखाई दे रहीं हैं।
ऐ चाँद, रवि, और आसमाँ, जाओगे तुम सब और कहाँ,
मैं क्षितिज हूँ, पड़ेगा तुम्हें भी बस मुझमें ही समाना यहाँ ।
~सुनंदा जदौन
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