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31 DEC 2020 AT 17:10
समस्त जगत एक व्यापक भ्रम है लेकिन फिर भी इस जिंदगी को स्वप्नों के यथार्थपूर्ण सांचे में ढालने कि पुरजोर कोशिश करते हैं, हम जैसे नाचीज़ लोग।
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20 DEC 2020 AT 16:24
मैंने खुद को बड़े जोरों से थाम लिया,
जब इब्तिदा-ए-इश्क़ के मंजर को जान लिया।-
19 DEC 2020 AT 14:08
जज्बातों की अतिवृष्टि में भी
होठों पर बात नहीं आती,
तनहाइयां दरबदर टूट रही हैं मेरी
कमबख्त ये वस्ल की रात नहीं आती।
दिन में आखिर चांद की
बिसात क्या होती है,
रुसवाईयां तो बहुत होती हैं
मगर बात कहां होती है।
मेरी खामोशियों के मजलिस में
अब तो सिर्फ तेरी ही बात होती है;
ख्वाहिश-ए-गुफ्तगू की हिमाकत करें भी तो कैसे ऐ हमनशीं
हर वक्त तेरे हिज्र की बरसात होती रहती है।
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