जो किस्मत में लिखा हो वो कोई बदल नहीं सकता,
पर अगर उसकी इनायत हुई, तो तुझे वो भी मिलेगा जो तुझे लगता है कि तेरा कभी हो नही सकता.....!!-
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कुछ लोग है जो... read more
वो जो बेफिक्र सी, बेखबर सी,
अपनी दुनिया में रहती थी।
अपने हर सपने को डायरी के,
आख़िरी पन्ने पर लिखती थी।
पन्नों के ही बीच कहीं,
कुछ फूल सुखाया करती थी।
वो चुप रह कर ही लोगों में,
दुनिया को खूब समझती थी।
लफ़्ज़ों से मोहब्बत थी उसको,
ख़्वाबों को संजोया करती थी।
वो कैसी है? देखी है कहीं?
कई साल हुए, मुझे मिली नहीं।
तुमको जो मिले, उस से कहना,
है याद किया, किसी अपने ने।
कल बाग़ में चलते, राह में वो,
मुझसे शायद टकराई थी!
मैंने रोका, पर रुकी नहीं,
मुझे पहचान नहीं वो पाई थी।
वो कहाँ गयी, कुछ पता नहीं ,
रहती है कहाँ, कुछ कहा नहीं।
कुछ आँखें मेरी नम सी हैं,
कुछ फूल रखे हैं कोने में।
इस दिल की गहरी परतों में,
शायद वो मिले, अब बरसों में।
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तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम ... !!-
मैं पीड़ा का राजकुंवर हूं तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहां पर होगा ?
मीलों जहां न पता खुशी का
मैं उस आंगन का इकलौता,
तुम उस घर की कली जहां नित
होंठ करें गीतों का न्योता,
मेरी उमर अमावस काली और तुम्हारी पूनम गोरी
मिल भी गई राशि अपनी तो बोलो लगन कहां पर होगा ?
मेरा कुर्ता सिला दुखों ने
बदनामी ने काज निकाले
तुम जो आंचल ओढ़े उसमें
नभ ने सब तारे जड़ डाले
मैं केवल पानी ही पानी तुम केवल मदिरा ही मदिरा
मिट भी गया भेद तन का तो मन का हवन कहां पर होगा ?
इतना दानी नहीं समय जो
हर गमले में फूल खिला दे,
इतनी भावुक नहीं ज़िन्दगी
हर ख़त का उत्तर भिजवा दे,
मिलना अपना सरल नहीं है फिर भी यह सोचा करता हूँ
जब न आदमी प्यार करेगा जाने भुवन कहां पर होगा ?
मैं पीड़ा का राजकुंवर हूं तुम शहज़ादी रूप नगर की
हो भी गया प्यार हम में तो बोलो मिलन कहां पर होगा ?-
खुदा से मेरी आखिरी, अरदास रहा कर ।
तू ख्वाब में सही, मेरे पास रहा कर ।।
ये इश्क़ की सिरहन न ले ले जान आशिक़ की।
तू मुझसे दुश्मनी कर, नाराज़ रहा कर ।।
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इसे महावर कहूँ
या महज चटख सुर्ख रंग
उगते-डूबते सूरज की आभा
वसन्त का मानवीकरण
या कुछ और ।
खँगाल डालूँ शब्दकोश का एक-एक पृष्ठ
भाषा-विज्ञानियों के सत्संग में
शमिल हो सुनूँ
इसके विस्तार और विचलन की कथा के कई अध्याय
क्या फ़र्क़ पड़ता है !
फ़र्क़ पड़ता है
इससे
और..
और दीपित हो जाते हैं तुम्हारे पाँव
इससे सार्थक होती है संज्ञा
विशिष्ट हो जाता है विशेषण
पृथ्वी के सादे काग़ज़ पर
स्वत: प्रकाशित होने को
अधीर होती जाती है तुम्हारी पदचाप ।-
कोई नही मिलेगा....
ना तुम्हें हम सा,ना हमें तुम सा
तुम अनमोल ठहरे और हम नायाब....!!
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कोई नही मिलेगा....
ना तुम्हें हम सा,ना हमें तुम सा
तुम अनमोल ठहरे और हम नायाब....!!
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सिर्फ वजूद ही अलग है मेरा उससे,
बाकि रूह मे तो वो कबसे शामिल है मेरे..!!-
तेरी राहों में गुल बन के खिलती रहूंगी,
बन के साया तेरा संग चलती रहूंगी...
तेरे होठों की मुस्कान मेरी जिंदगी है,
इबादत तेरी उल्फत की करती रहूंगी...
ना एक पल भी अंधेरा तेरी राह होने दूंगी,
चांदनी में भी बन जुगनू जलती रहूंगी...
तू आए ना आए तेरा ईमान जाने,
खुद को खुद में समेटे मचलती रहूंगी...
हर तमन्ना मेरी तेरी ख्वाहिश पर कुर्बान,
तेरी खातिर में पल-पल संवरती रहूँगी...
ता उम्र ता कयामत वा खुदा मैं तेरी हूं,
मर कर भी ख्वाबों में मिलती रहूंगी....-