कसूर तुम्हारा नहीं की........ तुम मुझे चाहतीं हो।
पर माफ करना ..... मै किसी और का हो चुका हूं।।-
किसी को हसाना बहुत आसान है जनाब, पर
रुलाना उतना ही मुश्किल .... रुलाने के लिए दिल तोड़ना भी पड़ता है।।-
ऐ वक्त .... जरा समझा दो उन्हें भी ,
ना ही वो कसमे झूठी थी और ना ही हम झूठे निकले...
बस कुछ रिश्तों की खातिर ...
अपने अरमानों कि गला
घोटना पड़ा।-
खता किसकी है?... ये वक्त जानता है।
अगर मिले वो वक्त.. तो एक दफा ,
.....मालूमात जरूर कर लेना
बेगुनाह होकर भी सज़ा किसने पाई।।-
कोरोना से लड़ रही है
देश की सरकार
एकांत या फिर अंत
जनता इसपे करे विचार।
मुंह को ढक कर खासे छीके
बने ना होशियार
बीस सेकेंड हाथ को धोएं
सेनिटाइजर से कई बार।
सबसे दूरी बना के रखना
कदम की तीन - चार
देख कहीं से पड ना जाए
कोरोना की मार।
बेवजह ना निकले घर से
न निकले बारम्बार
लठ पिल रहा सड़कों पर अब
खुद ही करे विचार।-
Maine toh tujhe waha bhi manga ..
Jaha saare apni khushiya mangte hain.!
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गर बच गई वो भ्रूण में, तो बाहर मारी जाएगी
गर बच गई जो स्कूल में, तो वहा सता दी जाएगी।
वो लूटेगी वो नोचे जाएगी , दूसरो से दबोची जाएगी
ना जाने कितनी दफा, उसकी खाल खरोची जाएगी।
गर पार हुई वो ये घिनौना दरिया हवस का कभी ,
तो दहेज की आग में वो जिंदा झुलसी जाएगी
सब सहकर चुप रहने की, नसीहत भी दे दी जाएगी
जो बोल पड़ी कभी तो ,आवाज दबा दी जाएगी
फिर अगर कोई सबला अपना कदम बढ़ाएगी
साहस करेगी ,बोलेगी ,चिखेगी और चिल्लाएगी
तब गुनहगारों को पुलिस उठा के ले जाएगी।
खिलाएगी उन्हें पिलाएगी, ऐसो- आराम कराएगी
कानून की देवी अंधी , बेहरी और गूंगी हो जाएगी
आयेंगे कुछ ठेकेदार और अपनी पूरी दम लगाएंगे
झूठ फरेब से एक एक को बा- इज्ज़त बरी कराएंगे।
वो तब तक उन्हें यूहीं ऐसे बचाएंगे जब तक ,कि
उनके बेटी के साथ वही कहानी नहीं दोहरा दी जाएगी।
ये मोमबत्ती बुझ जाएगी ,छाएगा अंधेरा फिर से जब
इंसाफ फिर से उसके साथ नाइंसाफी के साथ खेलेगा।
दरिंदे फिर से समाज में आकर सामाजिक हो जाएंगे
और वो बेगुनाह हो कर भी बेगुनाह हो जाएगी।।
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मरहम- ए- वक्त बेअसर है, कच्चे धागों से ज़ख्म ना सिया कर,
करना ही है तुझे इंसाफ ऐ खुदा गर, तो कुछ ऐसे रहम किया कर,
ना लिखा कर किस्मत में उनसे मिलना जिन्हें छोड़ कर जाना है,
या जिसे इश्क़ हो जाएं किसी से तो उसे गम- ए- जुदाई ना दिया कर।।-
तुम जो शब्दों में इतनी गहराई लिए बैठे हो ,
तुम्हारे अपने दर्द हैं या पीर पराई लिए बैठे हों?
अरे चुभती है बहुत तुम्हारी बाते इस दुनिया को
भला क्यूं अल्फ़ाज़ में इतनी सच्चाई लिए बैठे हो?
यूं तड़प कर लिखते हो की दिल को तड़पा जाते हो
हमे भी बताओ भला कौन सी रौसनाई लिए बैठे हो?
किसी और से ना सही पर, खुद से तो मिला करो,
क्यूं भरी महफिल दिल में तन्हाई लिए बैठे हो?
लड़ सकते हो दुनिया से तो, खुद से क्यूं नहीं लड़ते,
क्यूं लेकर इल्जाम इस दिल पे इतनी रुसवाई लिए बैठे हो?
क्यूं मिलाते नहीं हो , आईने से नजरे भला तुम
क्यूं आज भी खुद में उसकी परछाई लिए बैठे हो?
मुक्कमल तेरा भी इश्क़ था और उसकी भी ,क्या हुआ
गर वो चली गई तो ,वो जिस्म ले गई अपनी पर
उसकी रूह तो अब भी तुम दिल में अपने लिए बैठे हो।।-
मेरी दुवाओं... का बस इतना असर हो जाए ,
मेरी बेचैनी का ...मेरे यार को बस खबर हो जाए।।-