गुरुर तो मुझमें जरा सा भी नहीं है मगर तोड़ना अच्छे से जानता हूं !
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वरना अटूट प्रेम का प्रतीक तो रामसेतु हैं !!❤
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी|
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा||-
ये हुनर रब ने मेरी ज़ात में रक्खा हुआ है
अच्छे अच्छो को भी औक़ात में रक्खा हुआ है-
हजारों तम्मनाएं होती हैं दिल में
हमारी तो बस इक तम्मना ये है
मुझे इक दफा अपना कह के पुकारो
बस इस के सिवा कोई हसरत नहीं है-
चलते रहेंगे काफ़िले मेरे बग़ैर भी यहाँ ,
एक तारा टूट जाने से आसमान सूना नहीं होता ..!!-
मैं जो कुछ हूँ वही कुछ हूँ जो ज़ाहिर है वो बातिन है
मुझे झूटे दर-ओ-दीवार चमकाना नहीं आता
मैं दरिया हूँ मगर बहता हूँ मैं कोहसार की जानिब
मुझे दुनिया की पस्ती में उतर जाना नहीं आता
परिंदा जानिब-ए-दाना हमेशा उड़ के आता है
परिंदे की तरफ़ उड़ कर कभी दाना नहीं आता-
ख़त के छोटे से तराशे में नहीं आएंगे
ग़म ज़ियादा हैं लिफ़ाफ़े में नहीं आएंगे
हम ना मजनूँ हैं ,ना फ़रहाद के कुछ लगते हैं
हम किसी दश्त तमाशे में नहीं आएंगे
मुख़्तसर वक़्त में यह बात नहीं हो सकती
दर्द इतने हैं खुलासे में नहीं आएंगे
उसकी कुछ ख़ैर ख़बर हो तो बताओ यारों
हम किसी और दिलासे में नहीं आएंगे
जिस तरह आपने बीमार से रुख़सत ली है
साफ़ लगता है जनाज़े में नहीं आएंगे-
बहुत नज़दीक से देखा है इस दुनिया को,
तभी सबसे दूर जाकर बैठा हूँ.!-
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत के पुनर्निर्माण
की आप सब को हार्दिक शुभकामनाएं !-